बॉम्बे हाईकोर्ट ने शोधकर्ता रोना विल्सन और कार्यकर्ता सुधीर धावले को जमानत दे दी है, जिन्हें 2018 में एल्गर परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार किया गया था। यह फैसला जस्टिस ए एस गडकरी और जस्टिस कमल खता की खंडपीठ ने सुनाया, जिन्होंने अपने फैसले में उनके लंबे समय तक जेल में रहने और मुकदमे की धीमी गति को महत्वपूर्ण कारक बताया।
गिरफ्तारी के बाद से ही विल्सन और धावले दोनों जेल में हैं और विशेष अदालत ने अभी तक उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किए हैं। वकीलों मिहिर देसाई और सुदीप पासबोला के नेतृत्व में उनके बचाव ने मुकदमे की प्रक्रिया में अनुचित देरी को उजागर किया। जमानत देते हुए, हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वह इस स्तर पर मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं कर रहा है, बल्कि आरोपी के अधिकारों को प्रभावित करने वाली प्रक्रियात्मक देरी से चिंतित है।
अपनी जमानत शर्तों के तहत, विल्सन और धवले को एक-एक लाख रुपये की जमानत राशि जमा करनी होगी और नियमित रूप से विशेष एनआईए अदालत के समक्ष उपस्थित होना होगा, जहां उनका मुकदमा चल रहा है। पीठ ने 300 से अधिक गवाहों की विस्तृत सूची पर भी गौर किया, जिससे पता चलता है कि निकट भविष्य में मुकदमे का निष्कर्ष निकलने की संभावना नहीं है।
एलगर परिषद मामले की शुरुआत 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एक सम्मेलन में हुई घटनाओं से हुई, जहां कथित तौर पर भाषणों ने अगले दिन कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़का दी थी। पुणे पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि यह कार्यक्रम माओवादियों के समर्थन से आयोजित किया गया था, बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जांच अपने हाथ में लेने के बाद इस आरोप को आगे बढ़ाया।
इस हाई-प्रोफाइल मामले में गिरफ्तार किए गए 16 व्यक्तियों में से कई को समय के साथ जमानत मिल गई है। रोना विल्सन को जून 2018 में दिल्ली में उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था, जिसे जांच एजेंसियों ने शहरी माओवादियों के बीच एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में चिह्नित किया था। पहले गिरफ्तार किए गए सुधीर धवले पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सक्रिय सदस्य होने का आरोप लगाया गया था।