बॉम्बे हाई कोर्ट ने कोर्ट कार्यवाही की ऑडियो रिकॉर्डिंग करने पर याचिकाकर्ता पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता पर अपने मोबाइल फोन से कोर्ट कार्यवाही की अनधिकृत ऑडियो रिकॉर्डिंग करने के लिए ₹1,00,000 का जुर्माना लगाया है। न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाटा की खंडपीठ ने संबंधित व्यक्ति को यह राशि हाई कोर्ट कर्मचारियों की मेडिकल वेलफेयर फंड में तीन दिनों के भीतर जमा करने का निर्देश दिया। यह निर्णय न्यायालय की गरिमा बनाए रखने और न्यायिक कार्यवाही के अनधिकृत दस्तावेजीकरण को रोकने के लिए कड़े रुख को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि

यह घटना सिविल रिट याचिका संख्या 16293/2024 के दौरान हुई, जिसका शीर्षक “समीर मोहम्मद यूसुफ पटेल बनाम पनवेल नगर निगम एवं अन्य” था। यह मामला 27 फरवरी 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था, जब अदालत के कर्मचारियों ने एक व्यक्ति को कार्यवाही की रिकॉर्डिंग करते हुए देखा। जब उससे पूछताछ की गई, तो उसने खुद को साजिद अब्दुल जब्बार पटेल बताया, जो ओवे, खारघर, पनवेल, जिला रायगढ़ का निवासी और प्रतिवादी संख्या 3 एवं 4 का रिश्तेदार था।

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इस याचिका को याचिकाकर्ता समीर मोहम्मद यूसुफ पटेल ने दायर किया था, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता अजय एस. पाटिल कर रहे थे। प्रतिवादियों की ओर से अधिवक्ता मीत सावंत (प्रतिवादी संख्या 1 के लिए), अधिवक्ता एच.एस. वेणेगावकर और अधिवक्ता हर्ष देढिया (प्रतिवादी संख्या 3 और 4 के लिए), तथा सहायक सरकारी अभिभाषक सविना आर. क्रास्टो (प्रतिवादी संख्या 5 – राज्य के लिए) उपस्थित थे।

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कानूनी मुद्दे

इस मामले में मुख्य कानूनी मुद्दा न्यायालय कार्यवाही की अनधिकृत रिकॉर्डिंग था, जो बॉम्बे हाई कोर्ट रजिस्ट्री के 13 फरवरी 2017 के नोटिस के तहत सख्त वर्जित है। इस नियम के अनुसार, बिना पूर्व अनुमति के किसी भी प्रकार की रिकॉर्डिंग या प्रसारण न्यायालय की गरिमा का उल्लंघन माना जाता है और इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

चूंकि श्री पटेल के पास कोई अनुमति नहीं थी, उनकी मोबाइल फोन को जब्त कर बंद कर दिया गया और उसे कोर्ट की रजिस्ट्री को सौंप दिया गया। इस पर विचार किया गया कि इस तरह की अनधिकृत गतिविधियों पर क्या दंडात्मक कार्रवाई की जाए और भविष्य में इस तरह के उल्लंघनों को रोकने के लिए क्या निवारक उपाय किए जाएं।

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कोर्ट का निर्णय

सुनवाई के दौरान, प्रतिवादी संख्या 3 एवं 4 के वकील अधिवक्ता एच.एस. वेणेगावकर ने स्वीकार किया कि श्री पटेल ने अनुमति के बिना कार्यवाही रिकॉर्ड की थी और यह अनुचित था। हालांकि, उन्होंने दलील दी कि यह उनका पहला अपराध था, इसलिए उनके प्रति नरमी बरती जाए।

कोर्ट ने इस स्वीकारोक्ति को ध्यान में रखा लेकिन यह भी माना कि इस प्रकार की अनधिकृत रिकॉर्डिंग न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को प्रभावित कर सकती है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा:

“न्यायालय कार्यवाही की अनधिकृत रिकॉर्डिंग एक गंभीर मामला है जो न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा को खतरे में डाल सकता है। ऐसे कार्यों को सहन नहीं किया जा सकता।”

इसलिए, न्यायालय ने श्री पटेल पर ₹1,00,000 का आर्थिक दंड लगाया और यह राशि हाई कोर्ट कर्मचारियों की मेडिकल वेलफेयर फंड में तीन दिनों के भीतर जमा करने का निर्देश दिया। इस राशि के भुगतान को न्यायालय के प्रति उनकी एक प्रतिबद्धता के रूप में माना गया।

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इस आदेश के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए, कोर्ट ने इस मामले को 5 मार्च 2025 को “अनुपालन रिपोर्टिंग” के लिए सूचीबद्ध किया

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