बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ कई झूठे मामले दर्ज करना क्रूरता है। वैवाहिक अधिकारों और पूर्व तलाक डिक्री से संबंधित एक अपील की समीक्षा करते हुए औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति वाईजी खोबरागड़े ने यह फैसला सुनाया।
विवाद की शुरुआत 2004 में परभणी में एक शादी से हुई, जहां दंपति 2012 तक साथ रहे और उनकी एक बेटी भी हुई। पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी ने 2012 में उसे छोड़ दिया और अपनी बेटी को अपने माता-पिता के घर ले गई। 2015 में, उसने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि एक अनुकूल अदालत के फैसले के बाद वह उसके साथ रहने के लिए लौट आई लेकिन उसे लापता पाया, जिसके बाद उसने एक लापता व्यक्ति की शिकायत दर्ज कराई।
पति ने बताया कि उसकी पत्नी ने उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कई झूठे आपराधिक और नागरिक मामले शुरू किए, जिससे काफी मानसिक परेशानी हुई। आरोपों में उनके पिता और भाई पर छेड़छाड़ का गंभीर आरोप भी शामिल था, जिससे बाद में उन्हें बरी कर दिया गया। पति के अनुसार, इन कार्यों से उसके परिवार को आघात और प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ।
न्यायमूर्ति खोबरागड़े ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्रवाई जैसे कानूनी उपायों के लिए आवेदन करना स्वाभाविक रूप से क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ आधारहीन पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने में पत्नी की हरकतें इस सीमा को पार कर गईं। अदालत ने इन कृत्यों को क्रूरता का सूचक पाया और तलाक देने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।
हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर तलाक की पुष्टि करते हुए पत्नी की अपील खारिज कर दी। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि झूठे आरोपों का परिवार की सामाजिक स्थिति और मानसिक भलाई पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा।