महाराष्ट्र के शहरी नियोजन और राजस्व से जुड़े एक अहम फैसले में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने नगर निगमों के उस अधिकार को बरकरार रखा है, जिसके तहत वे स्काई-साइन, होर्डिंग्स और बिलबोर्ड के लाइसेंस देने और उनके नवीनीकरण (रिन्यूअल) के लिए शुल्क वसूल सकते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि नागरिक निकायों के पास ऐसे शुल्क लगाने का पूर्ण कानूनी अधिकार है। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि इन विज्ञापनों का नियमन नहीं किया गया, तो शहरों की स्काईलाइन अनियंत्रित व्यावसायिक हितों के चलते “अराजक स्थिति” में बदल जाएगी।
यह फैसला जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी और जस्टिस अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने सुनाया। मंगलवार को पारित इस आदेश की विस्तृत प्रति गुरुवार को उपलब्ध हुई। कोर्ट उन याचिकाओं के समूह पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें पुणे, नासिक, ठाणे और कोल्हापुर सहित कई नगर निगमों के निर्णयों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने नगर निगमों द्वारा स्काई-साइन और होर्डिंग्स के लिए लाइसेंस शुल्क तय करने और उसे बढ़ाने के फैसले का विरोध किया था। उनकी मुख्य दलील थी कि लगाया गया शुल्क अनुचित रूप से अधिक, अत्यधिक और भेदभावपूर्ण है। उन्होंने तर्क दिया कि शुल्क में बढ़ोतरी मनमानी थी और कोर्ट से इसे रद्द करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए, हाईकोर्ट ने शहरी विज्ञापन स्थानों को विनियमित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। पीठ ने कहा कि आधुनिक शहरों की स्काईलाइन (क्षितिज) निर्धारित करने में स्काई-साइन और होर्डिंग्स की अहम भूमिका होती है, इसलिए इनके नियंत्रण को अत्यंत गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, “इस संबंध में कोई भी अदूरदर्शी दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता।” जजों ने कहा कि यदि नागरिक निकायों की नियामक शक्तियों को मान्यता नहीं दी गई, तो विज्ञापन लगाने वालों की “अनियंत्रित मर्जी” चलेगी, जिसे अनुमति नहीं दी जा सकती।
शुल्क के “अत्यधिक” होने के तर्क पर कोर्ट ने कहा कि निगमों द्वारा तय की गई दरें न तो मनमानी हैं और न ही अनुचित। पीठ ने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम के तहत, मनपा आयुक्त (Municipal Commissioner) को लाइसेंस जारी करने और शुल्क तय करने का अधिकार प्राप्त है, जिसे समय-समय पर निगम की मंजूरी से संशोधित किया जा सकता है।
फैसले में विज्ञापन के बुनियादी ढांचे में आए बदलावों का विशेष उल्लेख किया गया। कोर्ट ने कहा कि आज की लाइसेंसिंग आवश्यकताएं बीते वर्षों की तुलना में “व्यापक रूप से भिन्न” हैं। अब परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है; जहां पहले केवल पेंट किए गए धातु के बोर्ड होते थे, वहां अब हाई-रिज़ॉल्यूशन वाली इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन आ गई हैं, जो दिन भर में कई विज्ञापन दिखा सकती हैं।
पीठ ने बताया कि इस तकनीकी बदलाव ने सुरक्षा मानकों और नियामक नियंत्रण के सामने नई चुनौतियां पेश की हैं। नगर निकाय इस समय तकनीकी प्रगति को अपनाने और जनहित की रक्षा की अपनी “कठिन जिम्मेदारी” के बीच संतुलन बना रहे हैं। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि जनहित से किसी भी तरह का समझौता “गैर-परक्राम्य” (non-negotiable) है।
हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज करते हुए कड़ी फटकार लगाई और इसे “लक्जरी लिटिगेशन” (शौकिया या विलासितापूर्ण मुकदमेबाजी) करार दिया। पीठ ने टिप्पणी की कि इस मुकदमेबाजी ने अदालत का बहुमूल्य समय बर्बाद किया है और ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं का एकमात्र उद्देश्य व्यावसायिक था, ताकि वे अपने मुनाफे को अत्यधिक बढ़ा सकें।
अंत में, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि नगर निगमों के निर्णयों में कोई अवैधता या त्रुटि नहीं है। उन्होंने पुष्टि की कि विज्ञापन संरचनाओं के लिए अनुमति देने और नवीनीकरण करने के लिए शुल्क तय करना और बढ़ाना नागरिक निकायों के कानूनी अधिकारों के दायरे में आता है।

