एक समान-लैंगिक जोड़े ने आयकर अधिनियम की उन प्रावधानों को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया है, जिनमें उपहार कर (गिफ्ट टैक्स) को लेकर पति-पत्नी को दी गई छूट का लाभ उन्हें नहीं मिलता।
याचिका में कहा गया है कि आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(x) के पांचवें प्रावधान के स्पष्टीकरण में प्रयुक्त ‘पति/पत्नी’ (spouse) शब्द असंवैधानिक है, क्योंकि यह समान-लैंगिक जोड़ों को इस परिभाषा से बाहर रखता है।
धारा 56(2)(x) के तहत यदि कोई धनराशि, संपत्ति या परिसंपत्ति बिना उचित प्रतिफल के प्राप्त होती है और उसका मूल्य ₹50,000 से अधिक है, तो उसे ‘अन्य स्रोत से आय’ माना जाता है और उस पर कर लगाया जाता है। हालांकि, इसके पांचवें प्रावधान में रिश्तेदारों से प्राप्त उपहारों को छूट दी गई है, जिसमें पति/पत्नी भी शामिल हैं। लेकिन spouse की परिभाषा अधिनियम में अलग से नहीं दी गई है।

न्यायमूर्ति बी.पी. कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनावाला की पीठ ने 14 अगस्त को माना कि यह याचिका संवैधानिक वैधता का प्रश्न उठाती है और इस पर भारत के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया। अगली सुनवाई 18 सितंबर को निर्धारित की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से यह भी आग्रह किया है कि spouse शब्द की व्याख्या में समान-लैंगिक जोड़ों को भी शामिल किया जाए, ताकि उन्हें भी उपहार कर से छूट मिल सके। उनका कहना है कि लंबे समय तक स्थायी और स्थिर संबंध में रहने वाले समान-लैंगिक जोड़े भी हर दृष्टि से विवाहिता विषमलैंगिक जोड़ों के समान हैं और उन्हें भी समान अधिकार दिए जाने चाहिए।
यह मामला भारत में एलजीबीटीक्यू+ समानता की लड़ाई में एक और अहम पड़ाव माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में सहमति से बने समान-लैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बाद विवाह समानता और कर नियमों में समान अधिकारों पर बहस लगातार जारी है।