बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि दुर्घटना पीड़ितों को मिलने वाले मुआवज़े से मेडिक्लेम या स्वास्थ्य बीमा के तहत मिली राशि की कोई कटौती नहीं की जा सकती। यह फैसला तीन जजों की पीठ — न्यायमूर्ति ए.एस. चंदूरकर, न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे — ने सुनाया, जिससे निचली अदालतों में इस मुद्दे पर हो रहे विभिन्न निर्णयों पर विराम लगा।
यह मामला न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा मुंबई की एक एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देने के बाद तीन जजों की खंडपीठ के सामने आया था। बीमा कंपनी की दलील थी कि दुर्घटना पीड़ित को मेडिक्लेम के तहत जो राशि मिली है, उसे कुल चिकित्सा खर्चों के मुआवज़े से घटा दिया जाना चाहिए। हालांकि, दावेदारों ने इसका विरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि बीमा भुगतान बीमित और बीमा कंपनी के बीच एक संविदात्मक (contractual) संबंध का परिणाम है, जो बीमित व्यक्ति द्वारा प्रीमियम का भुगतान करने पर आधारित होता है। अदालत ने अपने फैसले में कहा, “बीमा पॉलिसी से मिलने वाली राशि मृतक के हिस्से में उसकी दूरदर्शिता और वित्तीय समझदारी के कारण आती है — इसे लेकर कोई भी गलत करने वाला (जैसे कि वाहन मालिक या उसका बीमाकर्ता) लाभ नहीं उठा सकता।”

यह मामला इसलिए बड़ी बेंच को भेजा गया क्योंकि इससे पहले हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस मुद्दे पर परस्पर विरोधी फैसले दिए थे। सुनवाई के दौरान वर्ष 2013 के ‘दिनेशचंद्र शाह बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस’ और 2006 के ‘व्रजेश देसाई बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस’ मामलों में आए फैसलों के विभिन्न पहलुओं पर बहस हुई।
इस फैसले से अब यह स्पष्ट हो गया है कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत मिलने वाले मुआवज़े में से मेडिक्लेम या किसी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के तहत चिकित्सा खर्च के रूप में मिली राशि की कटौती नहीं की जा सकती।