बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि विदेश यात्रा करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार है और इस अधिकार को बाधित करने के लिए “अनावश्यक नौकरशाही अड़चनें” नहीं डाली जानी चाहिएं।
न्यायमूर्ति एम. एस. सोनक और न्यायमूर्ति अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने यह टिप्पणी 76 वर्षीय शरद खातू को राहत देते हुए की, जिनका पासपोर्ट नवीनीकरण आवेदन पुलिस के पोर्टल पर दर्ज एक गलत प्रविष्टि के आधार पर अस्वीकार कर दिया गया था। प्रविष्टि में यह दिखाया गया था कि उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित है।
खातू का पासपोर्ट अक्टूबर 2022 में समाप्त हो गया था। इसके बाद उन्होंने नवीनीकरण के लिए आवेदन किया। लेकिन पासपोर्ट प्राधिकरण ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऑनलाइन रिकार्ड में उनके खिलाफ 1990 का एक मामला लंबित दिख रहा है।

खातू ने संबंधित पुलिस स्टेशन और स्थानीय अदालत से जानकारी ली तो पता चला कि कोई भी मामला लंबित नहीं है। उन्होंने यह जानकारी पासपोर्ट प्राधिकरण को भी दी, फिर भी उनका आवेदन बंद कर दिया गया। मजबूर होकर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुनवाई के दौरान पुलिस ने अदालत को बताया कि वास्तव में खातू के खिलाफ कोई मामला लंबित नहीं है। खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि विदेश यात्रा करने का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
अदालत ने कहा, “इस अमूल्य अधिकार को निरर्थक करने के लिए अनावश्यक नौकरशाही अड़चनें पैदा नहीं की जानी चाहिएं।”
न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि गलत प्रविष्टि के कारण खातू ने “बहुमूल्य समय” गंवा दिया और वे अपने बेटे और पोते-पोतियों से मिलने दुबई नहीं जा सके।
अदालत ने खातू को नया पासपोर्ट आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि पासपोर्ट प्राधिकरण दो सप्ताह के भीतर इस पर निर्णय ले और प्रक्रिया पूरी करे।
इसके अलावा, पुलिस को आदेश दिया गया कि वह अपनी ऑनलाइन प्रणाली से गलत प्रविष्टि को तुरंत हटाए, ताकि भविष्य में खातू को कोई और परेशानी न झेलनी पड़े।
यह फैसला एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि विदेश यात्रा करने के मौलिक अधिकार को उचित प्रक्रिया के बिना सीमित नहीं किया जा सकता और प्रशासनिक त्रुटियों के आधार पर नागरिकों की स्वतंत्रता बाधित नहीं की जानी चाहिए। अदालत ने खासकर वरिष्ठ नागरिकों के मामलों में रिकॉर्ड की शुद्धता सुनिश्चित करने पर जोर दिया।