बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देने वाले जीआर के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग किया

बॉम्बे हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार के 2 सितंबर के सरकारी संकल्प (जीआर) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस जीआर के तहत हैदराबाद गजट को लागू करते हुए मराठवाड़ा क्षेत्र के पात्र मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने का प्रावधान किया गया है, जिससे उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदीश दादासाहेब पाटिल की पीठ ने बिना कोई कारण बताए पांचों याचिकाओं की सुनवाई से इनकार कर दिया और रजिस्ट्री को इन्हें उपयुक्त पीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया। अब इन याचिकाओं की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ के समक्ष होने की संभावना है।

ये याचिकाएं महाराष्ट्र माली समाज महासंघ, अहीर सुवर्णकार समाज संस्था, समता परिषद के सदानंद बापू मंडलिक, महाराष्ट्र नाभिक महामंडल और कुनबी सेना ने दायर की हैं। सभी याचिकाकर्ताओं ने जीआर को रद्द करने या सरकार को इसे वापस लेने का निर्देश देने की मांग की है।

कुनबी सेना ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि इस संकल्प ने कुनबी, कुनबी मराठा और मराठा कुनबी जैसी तीन श्रेणियों को प्रमाणपत्र देने के मानदंडों में अवैध बदलाव कर दिया है। इसे “असंवैधानिक” करार देते हुए कहा गया कि यह कदम मौजूदा ओबीसी समुदायों के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 342A के तहत विधायी अधिकार के बाहर है।

संविधान का अनुच्छेद 342A, जिसे संविधान (102वां संशोधन) अधिनियम, 2018 के जरिए जोड़ा गया था, राष्ट्रपति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) को अधिसूचित करने का अधिकार देता है। इसके बाद 2021 के संशोधन ने राज्यों को अपनी स्वतंत्र एसईबीसी सूची तैयार करने की अनुमति दी, जो केंद्र की सूची से अलग होगी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार का जीआर अपनी सीमा से बाहर जाकर संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

याचिकाओं में यह भी आरोप लगाया गया है कि जीआर ने एक राजनीतिक और सामाजिक रूप से प्रगतिशील समुदाय को मनमाने तरीके से ओबीसी लाभ प्रदान कर दिए, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यह कदम वर्तमान में ओबीसी के रूप में मान्यता प्राप्त 260 से अधिक जातियों और उपजातियों को प्रभावित करेगा, जिनमें से कई को अभी भी राज्य की नीतियों और शासन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

2 सितंबर को जारी यह जीआर मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल के नेतृत्व में हुए पांच दिवसीय आंदोलन के बाद आया, जिसमें मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग की गई थी। सरकार ने मराठवाड़ा क्षेत्र के पात्र मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने का प्रावधान कर आंदोलन को शांत करने की कोशिश की थी, लेकिन कई ओबीसी संगठनों ने तुरंत इसका विरोध किया।

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याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कोई भी सरकार एक समुदाय को दूसरे समुदाय की जाति श्रेणी में शामिल करने का अधिकार नहीं रखती। उन्होंने जीआर को मनमाना राजनीतिक समझौता बताया। अब खंडपीठ के अलग होने के बाद यह मामला मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आगे की सुनवाई के लिए रखा जाएगा।

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