डॉ. पायल तडवी आत्महत्या मामले में विशेष लोक अभियोजक को हटाने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से मांगा स्पष्टीकरण

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा कि आखिर किस आधार पर डॉ. पायल तडवी आत्महत्या मामले में विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) प्रदीप घरत को अचानक हटा दिया गया, जबकि सरकारी आदेश में इसका कोई कारण नहीं बताया गया था। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह अपने फैसले को उचित ठहराने के लिए शपथपत्र दाखिल करे।

मुख्य न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति एम.एम. साथाये की पीठ, मृतका की मां अबेदा तडवी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 7 मार्च को जारी उस अधिसूचना को चुनौती दी गई है जिसमें प्रदीप घरत को मामले से हटा दिया गया था। अदालत ने इस बात को गंभीरता से लिया कि सरकार ने हटाने के फैसले का कोई कारण नहीं बताया और टिप्पणी की, “आपने बस उन्हें हटा दिया। कानून कहता है कि आपको कारण बताने होंगे। अब आप फैसले के बाद कारण नहीं दे सकते।”

डॉ. पायल तडवी, जो तडवी भील समुदाय (एक आदिवासी मुस्लिम समूह) से थीं, ने 22 मई 2019 को आत्महत्या कर ली थी। आरोप है कि मुंबई के टोपिवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज और बीवाईएल नायर अस्पताल में उनकी तीन वरिष्ठ सहयोगियों — डॉ. हेमा आहूजा, डॉ. भक्ती मेहर और डॉ. अंकिता खंडेलवाल — द्वारा जातिगत उत्पीड़न किया गया था। तीनों को एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम और महाराष्ट्र रैगिंग निषेध अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। अब तक मुकदमा शुरू नहीं हुआ है।

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नवंबर 2024 में, एसपीपी रहते हुए प्रदीप घरत ने एक आवेदन दायर कर डॉ. यी चिंग लिंग चुंग चिआंग को सह-आरोपी बनाने की मांग की थी। वे उस समय प्रसूति एवं स्त्रीरोग विभाग की प्रमुख थीं और पायल और उनके परिवार की कई शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप था। यह आवेदन, कॉलेज की एंटी-रैगिंग समिति की रिपोर्ट और पूर्व शिकायतों के आधार पर, विशेष अदालत ने 28 फरवरी 2025 को स्वीकार कर लिया था।

हालांकि, इसके एक सप्ताह के भीतर ही राज्य सरकार ने घरत को हटा दिया और उनकी जगह अधिवक्ता महेश मनोहर मुले को नियुक्त कर दिया — इस फैसले का कोई कारण आधिकारिक आदेश में नहीं दिया गया और न ही पीड़ित परिवार को इसकी जानकारी दी गई, जिससे वर्तमान याचिका दाखिल की गई।

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गुरुवार की सुनवाई में अदालत ने सरकार से पूछा कि अचानक इस तरह बदलाव करने का क्या औचित्य है। अदालत ने कहा, “शिकायतकर्ता को इस विशेष लोक अभियोजक पर भरोसा है। फिर स्थिति को क्यों बदला जा रहा है?”

राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक श्रीकांत गावंड ने दलील दी कि प्रदीप घरत स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे थे और जांच अधिकारी से समन्वय नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 के नियम 4(3) का हवाला दिया, जो यह कहता है कि यदि विशेष लोक अभियोजक सावधानीपूर्वक कार्य नहीं करता है तो उसे हटाया जा सकता है — बशर्ते कि उसका कारण दर्ज हो।

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लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि आधिकारिक आदेश में ऐसा कोई कारण दर्ज नहीं है। अदालत ने कहा, “अब आप फैसले के बाद कारण नहीं दे सकते।”

अब अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह शपथपत्र दाखिल कर यह स्पष्ट करे कि घरत को क्यों हटाया गया और मृतका की मां द्वारा दाखिल याचिका का उत्तर दे। अगली सुनवाई शपथपत्र दाखिल होने के बाद की जाएगी।

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