बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी भारतीय नागरिक को किसी विदेशी नागरिकता प्राप्त बच्चे को गोद लेने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, भले ही वह बच्चा उनके रिश्तेदार का ही क्यों न हो और भारत में उनके साथ रह रहा हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक बच्चा “संरक्षा और देखभाल की आवश्यकता वाले” या “कानून के साथ संघर्ष में आए बच्चे” की श्रेणी में नहीं आता, तब तक ऐसे गोद लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
मुख्य न्यायाधीश रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोकले की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें एक भारतीय दंपती ने अपने रिश्तेदार के अमेरिका में जन्मे बच्चे को गोद लेने की अनुमति मांगी थी। बच्चा वर्ष 2019 में अमेरिका में पैदा हुआ था और कुछ महीनों की उम्र में भारत लाया गया था। तब से वह उसी दंपती के साथ रह रहा है।
अदालत ने कहा:

“जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम और गोद लेने के नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो विदेशी नागरिकता प्राप्त बच्चे को, चाहे वह रिश्तेदार ही क्यों न हो, गोद लेने की अनुमति दे जब तक वह बच्चा संरक्षा की आवश्यकता वाला या कानून से टकराव में न हो।”
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) ने भी दंपती का पंजीकरण इसलिए अस्वीकार कर दिया था क्योंकि नियमों के अनुसार केवल उन्हीं बच्चों को गोद लिया जा सकता है जिन्हें विशेष देखभाल या संरक्षण की आवश्यकता हो।
CARA ने अदालत को बताया कि अमेरिका में कानूनों के तहत पहले उस बच्चे को वहां की प्रक्रिया के अनुसार गोद लिया जाना आवश्यक है। इसके बाद ही भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को मान्यता मिल सकती है।
अदालत ने कहा कि:
“न तो याचिकाकर्ताओं का कोई मौलिक अधिकार उल्लंघन हुआ है, न ही अमेरिकी नागरिक बच्चे का कोई मौलिक अधिकार गोद लिए जाने के संदर्भ में।”
इसके साथ ही अदालत ने विशेष अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया।