बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि 2008 मालेगांव ब्लास्ट मामले में बरी किए गए आरोपियों के खिलाफ अपील दायर करना “सभी के लिए खुला दरवाज़ा” नहीं है। अदालत ने अपीलकर्ताओं से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या पीड़ित परिवारों के सदस्य ट्रायल के दौरान गवाह के रूप में पेश हुए थे या नहीं।
मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकड़ की खंडपीठ छह मृतकों के परिजनों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। यह अपील 31 जुलाई को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत द्वारा सातों आरोपियों को बरी करने के आदेश को चुनौती देती है। बरी किए गए आरोपियों में भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य पांच शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा कि क्या अपीलकर्ताओं ने अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में कार्यवाही में भाग लिया था। पीड़ित परिवारों के वकील ने स्वीकार किया कि पहले अपीलकर्ता, निसार अहमद—जिनके बेटे की धमाके में मौत हुई थी—गवाह के रूप में पेश नहीं हुए थे, लेकिन अदालत को बुधवार तक पूरी जानकारी देने का आश्वासन दिया।

खंडपीठ ने टिप्पणी की, “यदि अपीलकर्ता का बेटा धमाके में मारा गया, तो उसे गवाह होना चाहिए था। आपको यह स्पष्ट करना होगा कि वे गवाह बने थे या नहीं। यह सभी के लिए खुला दरवाज़ा नहीं है।”
मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी।
पिछले सप्ताह दायर अपील में कहा गया है कि विशेष अदालत ने पर्याप्त सबूतों के बावजूद आरोपियों को बरी करके गंभीर त्रुटि की है। अपील में मुख्य रूप से तर्क दिया गया है कि—
- आपराधिक साजिश स्वभाव से गुप्त रूप से रची जाती है और इसके प्रत्यक्ष सबूत मिलना संभव नहीं होता।
- ट्रायल जज ने अभियोजन की चूक पर हस्तक्षेप करने के बजाय “डाकिया या मौन दर्शक” की तरह आचरण किया।
- एनआईए ने जांच को कमजोर किया और लापरवाही से आरोपियों को लाभ पहुंचाया।
याचिकाकर्ताओं ने बरी किए जाने के फैसले को “कानून के विपरीत” बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग की है।
एनआईए कोर्ट के विशेष जज ए.के. लाहोटी ने 31 जुलाई को सातों आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि अभियोजन पक्ष “विश्वसनीय और ठोस सबूत” पेश करने में विफल रहा। अदालत ने कहा कि “सिर्फ संदेह असली सबूत का स्थान नहीं ले सकता” और जांच में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया।
बरी किए गए आरोपियों में शामिल हैं: प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय रहीरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी।
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के मालेगांव कस्बे में एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिल पर रखा विस्फोटक फट गया था। इस धमाके में छह लोगों की मौत हुई और 101 लोग घायल हुए। जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया था कि यह हमला दक्षिणपंथी उग्रवादियों द्वारा मुस्लिम समुदाय में दहशत फैलाने के लिए किया गया था।