बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना है कि जिस शादी में सुलह की कोई गुंजाइश न बची हो और जो पूरी तरह से टूट चुकी हो (Irretrievable Breakdown of Marriage), उसे जबरन बनाए रखना दोनों पक्षों के लिए ‘क्रूरता’ के समान है। चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम ए. अनखाड की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के 2019 के आदेश को रद्द करते हुए पति को तलाक की डिक्री प्रदान की।
अदालत ने यह राहत तब दी जब यह सामने आया कि पति ने अपनी दूसरी शादी को लेकर कोर्ट में झूठा हलफनामा (False Affidavit) दायर किया था। हालांकि, कोर्ट ने पति के इस आचरण को ‘परजुरी’ माना, लेकिन शादी के पूरी तरह खत्म हो जाने की वास्तविकता को प्राथमिकता दी। न्याय के संतुलन को बनाए रखने के लिए, कोर्ट ने पति को निर्देश दिया है कि वह पत्नी को पूर्ण और अंतिम समझौते (Full and Final Settlement) के रूप में 25 लाख रुपये, दो फ्लैट और 80 ग्राम सोना दे।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) का विवाह 10 मई 2006 को हुआ था और उनका एक बेटा भी है। शादी के कुछ साल बाद ही 2008 से उनके बीच विवाद शुरू हो गए और सितंबर 2012 से दोनों अलग रह रहे हैं।
पति ने 2013 में ‘क्रूरता’ के आधार पर तलाक की याचिका दायर की थी, जिसे 2019 में ठाणे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट में अपील की। इस दौरान पत्नी ने पति के खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली, भरण-पोषण, घरेलू हिंसा अधिनियम और आईपीसी की धाराओं के तहत कई मुकदमे दायर किए थे।
सुनवाई के दौरान एक नाटकीय मोड़ तब आया जब पत्नी ने आरोप लगाया कि पति ने दूसरी शादी कर ली है। पति ने 14 फरवरी 2025 को एक हलफनामा दायर कर इसका खंडन किया। हालांकि, हाईकोर्ट द्वारा आदेशित पुलिस जांच में यह पुष्टि हुई कि पति ने न केवल दूसरी शादी की है, बल्कि उस रिश्ते से उनकी एक बेटी भी है। कोर्ट ने नोट किया कि पति ने कोर्ट को गुमराह करने के लिए झूठा शपथ पत्र दिया था।
पक्षों की दलीलें
पति की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि दोनों पक्ष 2012 से अलग रह रहे हैं और उनके बीच वैवाहिक संबंध पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के प्रदीप भारद्वाज बनाम प्रिया (2025) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक ‘मृत शादी’ (Dead Marriage) में पक्षों को रहने के लिए मजबूर करना केवल सामाजिक बोझ और मानसिक पीड़ा को बढ़ाता है।
दूसरी ओर, पत्नी के वकील ने फैमिली कोर्ट के फैसले का समर्थन किया और कहा कि पति अपने आरोपों को साबित करने में विफल रहे हैं, इसलिए तलाक की अर्जी खारिज की जानी चाहिए।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणी
हाईकोर्ट ने पाया कि शादी पूरी तरह से टूट चुकी है और सुलह असंभव है। कोर्ट ने मैरिज काउंसलर की 2015 की रिपोर्ट का भी हवाला दिया।
अदालत की मुख्य टिप्पणियाँ:
- मुकदमों की बाढ़ क्रूरता है: सुप्रीम कोर्ट के के. श्रीनिवास राव बनाम डी.ए. दीपा (2013) फैसले का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि एक पक्ष द्वारा दूसरे के खिलाफ बार-बार आपराधिक मामले दर्ज कराना भी ‘क्रूरता’ की श्रेणी में आता है।
- मृत शादी: कोर्ट ने राकेश रमन बनाम कविता (2023) के फैसले को उद्धृत करते हुए कहा:
“एक शादी जो पूरी तरह से टूट चुकी है, वह दोनों पक्षों के लिए क्रूरता का कारण बनती है। ऐसी स्थिति में, कानून द्वारा उस बंधन को जबरन बनाए रखना विवाह की पवित्रता की सेवा नहीं करता, बल्कि पक्षों की भावनाओं के प्रति अनादर दर्शाता है।” - झूठा शपथ पत्र बनाम वास्तविकता: कोर्ट ने पति द्वारा झूठा हलफनामा दायर करने पर कड़ी आपत्ति जताई, लेकिन यह भी माना कि पति ने दूसरी शादी कर ली है और उनका एक बच्चा भी है। ऐसी स्थिति में, “शादी” को केवल कागजों पर बनाए रखने का अर्थ है एक-दूसरे को और अधिक पीड़ा देना।
फैसला और निर्देश
हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए पति और पत्नी के विवाह को भंग कर दिया। हालांकि, पत्नी के हितों को सुरक्षित करने के लिए, कोर्ट ने पति द्वारा दिए गए प्रस्ताव के आधार पर निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- संपत्ति हस्तांतरण: पति को दिवा स्टेशन (East) स्थित ‘वैष्णवी अपार्टमेंट’ और ‘सुमित हाइट्स’ में अपने दो फ्लैटों का मालिकाना हक पत्नी के नाम करना होगा।
- स्त्रीधन: पति को पत्नी को 80 ग्राम सोना वापस करना होगा।
- वित्तीय भुगतान: पति को 25,00,000 रुपये (पच्चीस लाख रुपये) की राशि का भुगतान पत्नी को करना होगा।




