बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि हाथी के गुणवत्तापूर्ण जीवन के अधिकार को मनुष्यों के धार्मिक उपयोग के अधिकार से ऊपर रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कोल्हापुर स्थित एक धार्मिक ट्रस्ट से एक हथिनी “महादेवी उर्फ माधुरी” को गुजरात के जामनगर स्थित एक पशु कल्याण संस्था राधे कृष्णा एलिफेंट वेलफेयर ट्रस्ट में स्थानांतरित करने के आदेश को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते देरे और न्यायमूर्ति नीला गोकले की पीठ ने स्वस्तिश्री जिनसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी संस्था द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए कहा कि धार्मिक आयोजनों में हथिनी के उपयोग के बावजूद, उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति अत्यंत खराब थी।
हाईकोर्ट ने दिसंबर 2024 और जून 2025 में उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा दिए गए हथिनी के ट्रांसफर आदेश को सही ठहराते हुए कहा, “जब एक ओर हथिनी का जीवन और उसका कल्याण है और दूसरी ओर धार्मिक परंपरा में उसका उपयोग करने का अधिकार, तो प्राथमिकता हथिनी के कल्याण को दी जानी चाहिए।”

पेटा इंडिया द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर जांच की गई थी, जिसमें हथिनी की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थी। जून 2024 की एक रिपोर्ट में बताया गया कि हथिनी को पर्याप्त आहार, सामाजिक वातावरण, स्वच्छता, पशु चिकित्सा देखभाल और कार्य अनुसूची नहीं मिल रहा था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि हथिनी के कूल्हों और अन्य स्थानों पर “डिकुबिटल अल्सरयुक्त घाव” थे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ट्रस्ट की मंशा जानबूझकर नुकसान पहुंचाने की नहीं हो सकती, लेकिन “ऐसी स्थिति में जानवर के अधिकार को मानव के धार्मिक अभ्यास के अधिकार पर प्राथमिकता मिलनी चाहिए।”
कोर्ट ने राधे कृष्णा ट्रस्ट को हथिनी के लिए “ईश्वर का वरदान” बताया और दो हफ्तों के भीतर हथिनी को वहां स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
निर्णय में न्यायालय ने संरक्षणवादी लॉरेंस एंथनी की पुस्तक “द एलीफेंट व्हिस्परर” का उल्लेख करते हुए कहा:
“सबसे महत्वपूर्ण सबक जो मैंने सीखा, वह यह है कि मनुष्यों और हाथियों के बीच कोई दीवारें नहीं हैं, सिवाय उन दीवारों के जो हम स्वयं खड़ी करते हैं, और जब तक हम न केवल हाथियों बल्कि सभी जीवों को सूरज के नीचे उनकी जगह नहीं देते, तब तक हम स्वयं भी पूर्ण नहीं हो सकते।”