बॉम्बे हाईकोर्ट ने वर्ली हिट-एंड-रन मामले में ‘हत्या’ की धारा जोड़ने की याचिका खारिज की

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को वर्ली हिट-एंड-रन मामले में मृतक महिला कावेरी नखवा के पति द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपियों पर हत्या की धारा जोड़ने और जांच को दूसरी एजेंसी को सौंपने की मांग की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की खंडपीठ ने कहा कि अदालत जांच एजेंसी को नई धाराएँ जोड़ने का निर्देश नहीं दे सकती जब तक पुलिस की ओर से कोई स्पष्ट उल्लंघन दिखाई न दे।

“इसे वापस ले लीजिए, वरना यह आपके लिए महंगा पड़ सकता है। यह स्वीकार्य नहीं है। यहां तक कि आपकी मांग पर आगे की जांच का आदेश भी नहीं दिया जा सकता,” अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा।

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याचिकाकर्ता प्रदीप नखवा ने अधिवक्ता दिलीप साताले के माध्यम से दायर याचिका में आरोप लगाया कि मुंबई पुलिस ने आरोपी मिहिर शाह (पूर्व शिंदे सेना नेता राजेश शाह का पुत्र) पर हत्या की धारा नहीं लगाई, जबकि इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि शाह को अपने कृत्य के घातक परिणामों का पता था।

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नखवा ने कहा, “उन्होंने हम पर गाड़ी चढ़ा दी और मेरी पत्नी को लंबी दूरी तक घसीटते रहे, अंततः गाड़ी उसके ऊपर चढ़ाई और बेरहमी से उसकी हत्या कर दी।”

याचिका में यह भी कहा गया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है कि कावेरी की मौत कई गंभीर चोटों और घसीटे जाने से हुए शॉक व अत्यधिक रक्तस्राव के कारण हुई। ऐसे में आरोपी की जानबूझकर और अमानवीय हरकत हत्या की धारा 302 को लागू करने के लिए पर्याप्त आधार है।

7 जुलाई 2024 को नशे में धुत्त मिहिर शाह ने अपने मित्र राजरिशि बिदावत के साथ मिलकर वर्ली सी फेस पर अपनी तेज रफ्तार बीएमडब्ल्यू से नखवा दंपति के स्कूटर को टक्कर मारी थी। हादसे में प्रदीप नखवा कार से दूर जा गिरे, जबकि कावेरी कार के पहिये और बंपर के बीच फंस गईं। शाह गाड़ी को तेज रफ्तार में चलाता रहा और कावेरी को करीब दो किलोमीटर तक घसीटता रहा, जब तक वाहन बंद नहीं हो गया।

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पुलिस ने शाह पर अब तक गैर इरादतन हत्या (कपल्बल होमिसाइड), लापरवाह ड्राइविंग और अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया है, लेकिन हत्या की धारा नहीं जोड़ी।

अदालत ने साफ किया कि घटना की गंभीरता के बावजूद न्यायपालिका जांच एजेंसी के विवेक में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, जब तक कि दुर्भावनापूर्ण इरादे या स्पष्ट गैरकानूनी कार्यवाही का सबूत न हो।

याचिका खारिज होने के बाद अब मुकदमा मौजूदा धाराओं के तहत ही आगे बढ़ेगा, जब तक कि जांच एजेंसी स्वयं आरोपों को संशोधित करने का निर्णय न ले।

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