बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की कृषि उत्पादों की खरीद और आपूर्ति से संबंधित योजना को चुनौती देने वाली जनहित याचिका और एक रिट याचिका को “पूरी तरह निराधार” बताते हुए खारिज कर दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर ₹1 लाख का जुर्माना भी लगाया है।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मर्ने की खंडपीठ ने 22 जुलाई को यह फैसला सुनाया, जिसका विस्तृत आदेश शुक्रवार को उपलब्ध हुआ। अदालत ने कहा कि 12 मार्च 2024 की सरकारी प्रस्ताव (GR) में कोई त्रुटि नहीं है और यह योजना कपास, सोयाबीन और अन्य तिलहनों की उत्पादकता बढ़ाने तथा वैल्यू चेन विकास के लिए तैयार की गई है।
अदालत ने कहा, “इन वस्तुओं की खरीद के लिए लागू निविदा प्रक्रिया में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।”

12 मार्च की GR में किसानों को बैटरी से चलने वाले स्प्रेयर, नैनो यूरिया, नैनो डीएपी, मेटाल्डिहाइड कीटनाशक और कपास भंडारण बैग जैसी पांच वस्तुओं की खरीद और आपूर्ति का प्रावधान है।
याचिका एक स्प्रेयर निर्माताओं के संगठन द्वारा दायर की गई थी, जिसे अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं को राज्य सरकार की विशेष कार्य योजना को चुनौती देने का कोई अधिकार (locus standi) नहीं है।
अदालत ने कहा कि “केवल अपने निजी हितों की रक्षा के लिए निर्माता और व्यापारी एक व्यापक सार्वजनिक योजना को चुनौती नहीं दे सकते जिसका उद्देश्य किसानों को लाभ पहुंचाना है।”
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ये पांच वस्तुएं पहले की 5 दिसंबर 2016 की GR में DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) योजना के तहत आती थीं, जिससे किसान बाजार से सस्ती दरों पर खरीद कर सकते थे। लेकिन नई GR में इन्हें DBT से हटाकर राज्य एजेंसियों के माध्यम से खरीदने का प्रावधान किया गया है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि महाराष्ट्र एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड और महाराष्ट्र स्टेट पॉवरलूम कॉरपोरेशन लिमिटेड जैसी सरकारी एजेंसियों ने इन वस्तुओं को “बेहद महंगी दरों” पर खरीदा।
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी. आर. ढोंड ने दलील दी कि 2016 की GR और 2024 की GR के उद्देश्य अलग-अलग हैं और दोनों एक-दूसरे से संबंधित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नई GR का उद्देश्य केवल खरीद नहीं, बल्कि फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और वैल्यू चेन को मजबूत करने की व्यापक योजना का हिस्सा है।
अदालत ने राज्य की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने दो अलग-अलग GR को गलत तरीके से जोड़ने की कोशिश की, जबकि उनका आपस में कोई संबंध नहीं है।
पीठ ने यह भी कहा कि इस प्रकार की “निराधार” याचिकाएं किसानों के हित में बनाई गई योजना के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न करती हैं, इसलिए याचिका खारिज करते हुए ₹1 लाख का जुर्माना लगाया जा रहा है।