बॉम्बे हाईकोर्ट ने सिविल रिवीजन आवेदन संख्या 189 ऑफ 2025 (Ballam Trifla Singh बनाम Gyan Prakash Shukla) को खारिज करते हुए महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल को निर्देश दिया है कि वह अधिवक्ता विजय कुर्ले के आचरण की जांच करें। यह मामला उस समय उठा जब अधिवक्ता कुर्ले ने ऐसे दिन स्थगन मांगा जब आदेश सुनाया जाना था, जबकि मामला पहले ही पूर्ण रूप से सुना जा चुका था।
न्यायमूर्ति माधव जे. जमदार ने अपने आदेश में कहा कि अधिवक्ता कुर्ले का यह व्यवहार अनुचित है और यह जानबूझकर आदेश पारित होने में विलंब लाने का प्रयास प्रतीत होता है। न्यायालय ने कहा:
“श्री विजय कुर्ले, अधिवक्ता का यह व्यवहार स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वह जानते थे कि आज आदेश पारित होना है और उन्होंने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि आदेश आज पारित न हो और कार्यवाही में देरी हो।”

मामला क्या था?
यह विवाद R.A.E. & R. Suit No.83/228 of 1996 से उत्पन्न हुआ था, जो मकान मालिक ज्ञान प्रकाश शुक्ल द्वारा किरायेदारों के खिलाफ दायर बेदखली वाद था। आरोप था कि किरायेदारों ने संपत्ति को अवैध रूप से सबलेट कर दिया था। यह वाद 2016 में डिक्री के साथ समाप्त हुआ, जिसे पूरा होने में लगभग दो दशक लगे।
इस डिक्री के निष्पादन में Ballam Trifla Singh (मूल प्रतिवादी संख्या 3 के पुत्र) ने बाधा डालते हुए दावा किया कि संपत्ति वर्ष 1990 की एक विवादित बिक्री विलेख के आधार पर उनकी है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट और अपीलीय न्यायालय दोनों ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज अपंजीकृत, बिना स्टाम्प के और जालसाजी पर आधारित हैं।
अधिवक्ता के आचरण पर न्यायालय की टिप्पणी
दिनांक 4 अप्रैल 2025 को, याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत थोराट ने बहस पूरी की। जब न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियों की ओर संकेत किया, तो श्री थोराट ने याचिका वापस लेने पर विचार करने के लिए समय मांगा। लेकिन 9 अप्रैल को जब आदेश पारित किया जाना था, तब अधिवक्ता विजय कुर्ले उपस्थित हुए और बहस करने की अनुमति मांगते हुए स्थगन मांगा।
न्यायमूर्ति जमदार ने इस आचरण की कठोर निंदा करते हुए कहा:
“एक अधिवक्ता को सदैव अपने अधिवक्ता पद की गरिमा के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए… श्री विजय कुर्ले ने एक न्यायालय अधिकारी के रूप में नहीं बल्कि याचिकाकर्ता के एजेंट/प्रवक्ता के रूप में कार्य किया है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि श्री कुर्ले ने मामले की स्थिति की कोई पूर्व जांच नहीं की और जानबूझकर कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास किया।
बार काउंसिल को जांच का निर्देश और लागत के साथ याचिका खारिज
न्यायालय ने माना कि श्री कुर्ले का आचरण अधिवक्ता आचरण नियमों का उल्लंघन है और इस पर बार काउंसिल द्वारा जांच की जानी चाहिए:
“यह स्पष्ट किया जाता है कि इस आदेश में श्री विजय कुर्ले के आचरण के संबंध में की गई टिप्पणियां प्राथमिक दृष्टया हैं और सभी बिंदुओं पर बार काउंसिल की जांच में स्वतंत्र रूप से विचार किया जाएगा।”
इसके साथ ही न्यायालय ने सिविल रिवीजन याचिका को ₹2,00,000 की अनुकरणीय लागत के साथ खारिज कर दिया और कोर्ट रिसीवर को आदेश दिया कि वह संपत्ति का कब्जा लेकर डिक्रीधारक को सौंप दे।
अंत में, न्यायालय ने एस.पी. चेंगलवरया नायडू बनाम जगन्नाथ और ऑरोविल फाउंडेशन बनाम नताशा स्टोरी जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि न्यायालयों में आने वाले पक्षकारों को “स्वच्छ हाथों” के साथ आना चाहिए और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जाना आवश्यक है।