बॉम्बे हाईकोर्ट: खाना बनाने या पहनावे पर ताने गंभीर क्रूरता नहीं, पति और परिवार पर 498-ए का केस रद्द

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-ए के तहत पति व उसके परिवार पर चल रही आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी। अदालत ने कहा कि पत्नी के खाना बनाने या कपड़े पहनने पर चिढ़ाने जैसी बातें कानून में परिकल्पित “गंभीर प्रकृति की क्रूरता” नहीं बनतीं, और जब विवाह से पहले ही पति की बीमारी की जानकारी थी, तो ट्रायल जारी रखना “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति विभा कंकनवाडी और न्यायमूर्ति संजय ए. देशमुख की खंडपीठ ने दिया। याचिका दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत दायर थी, जिससे एफआईआर और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM), औरंगाबाद के समक्ष लंबित आपराधिक केस को ख़ारिज करने का आग्रह किया गया था।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता पति, उसके माता-पिता और दो विवाहित बहनें थीं। पत्नी (शिकायतकर्ता) की एफआईआर से केस उपजा। विवाह 24 मार्च 2022 को हुआ—यह पत्नी का दूसरा विवाह था। एफआईआर के अनुसार एक–डेढ़ माह सब सामान्य रहा, फिर विवाद शुरू हुए। पत्नी ने आरोप लगाया कि पति की पूर्व-विद्यमान बीमारी छिपाई गई; सास और ननदों ने तोहफों को लेकर ताने दिए; मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न किया; फ्लैट खरीदने के लिए ₹15,00,000 की मांग की; और 11 जून 2023 को उसे घर से निकाल दिया गया।

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पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि विवाह से पहले ही पत्नी को पति की बीमारी की जानकारी थी—इसका प्रमाण पुलिस चार्जशीट में संलग्न विवाह-पूर्व चैट हैं। ननदें अलग रहती थीं और वैवाहिक जीवन में दखल नहीं था। परिवार के पास पहले से फ्लैट है, इसलिए ₹15 लाख की मांग का आरोप तर्कसंगत नहीं।
पत्नी की ओर से—साथ ही अतिरिक्त लोक अभियोजक—कहा गया कि बीमारी जानबूझकर छिपाई गई; तुच्छ बातों पर मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न किया गया; चरित्र पर संदेह जताया गया; और ₹15 लाख की विशिष्ट मांग हुई—जो 498-ए के तहत “क्रूरता” है और मुकदमा चलना चाहिए।

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अदालत की विश्लेषणात्मक टिप्पणियाँ

पीठ ने चार्जशीट सहित विवाह-पूर्व चैट का सूक्ष्म परीक्षण किया और दर्ज किया कि पति ने दवाइयों के बारे में स्पष्ट उल्लेख किया था। अदालत ने कहा:

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“इन चैट के बावजूद जब विवाह हुआ, तो अब यह नहीं कहा जा सकता कि पत्नी को विवाह से पहले बीमारी की जानकारी नहीं थी।”

498-ए की परिभाषा का हवाला देते हुए पीठ ने याद दिलाया कि “क्रूरता” वही मानी जाएगी जो स्त्री को आत्महत्या के लिए प्रेरित करे या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य को गंभीर क्षति/जोखिम में डाले। इस मानक पर प्रस्तुत आरोप खरे नहीं उतरते। अहम टिप्पणी में कहा गया:

“पत्नी के बारे में यह कहना कि वह ठीक से कपड़े नहीं पहनती या ठीक से खाना नहीं बनाती—गंभीर क्रूरता या उत्पीड़न के कृत्य नहीं माने जा सकते।”

₹15 लाख की कथित मांग पर अदालत ने तार्किकता पर प्रश्न उठाया:

“जब याचिकाकर्ता पहले से फ्लैट में रह रहे हैं और विवाह के समय पत्नी ने देखा भी था कि पति के पास घर है, तो फिर ₹15,00,000 की मांग क्यों होगी?”

जांच पर कटाक्ष करते हुए पीठ ने कहा कि पुलिस ने पड़ोसियों से यह पता तक नहीं किया कि पत्नी के साथ व्यवहार कैसा था:

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“जांच में पड़ोसियों से पूछताछ न किया जाना खटकता है।”

अंत में अदालत ने समग्र चित्र पर कहा:

“रिश्तों में तनाव आने पर अक्सर आरोपों में अतिशयोक्ति हो जाती है। जब विवाह से पहले सब कुछ स्पष्ट था और आरोप या तो ओम्निबस हैं या इतने गंभीर नहीं कि 498-ए के दायरे में आएँ, तो याचिकाकर्ताओं को ट्रायल का सामना कराना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

परिणाम

अदालत ने आपराधिक आवेदन स्वीकार कर लिया। IPC की धारा 498-ए, 323, 504, 506 सहपठित धारा 34 के अपराधों के लिए दर्ज एफआईआर और CJM, औरंगाबाद के समक्ष लंबित आपराधिक कार्यवाही—पति और परिजनों के खिलाफ—रद्द कर दी गई।

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