बॉम्बे हाईकोर्ट ने यस बैंक लिमिटेड को निर्देश दिया है कि वह माइक्रोफाइबर्स प्राइवेट लिमिटेड को ₹50,000 का मुआवज़ा अदा करे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद बैंक ने आधार कार्ड के बिना खाता खोलने में तीन से चार महीने की अनुचित देरी की।
न्यायमूर्ति एम.एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेन्द्र जैन की खंडपीठ ने यह आदेश दिनांक 26 जून 2025 को याचिका संख्या 1706/2018 में पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ता कंपनी ने बैंक पर बिना आधार कार्ड के खाता खोलने से मना करने को चुनौती दी थी।
पृष्ठभूमि
माइक्रोफाइबर्स प्रा. लि., जो मुंबई में स्थित है, ने जनवरी 2018 में यस बैंक के समक्ष एक खाता खोलने के लिए आवेदन किया था। बैंक ने 24 से 26 अप्रैल 2018 को भेजे गए पत्रों में याचिकाकर्ता को सूचित किया कि आधार कार्ड प्रस्तुत करना अनिवार्य है और बिना आधार कार्ड खाता नहीं खोला जा सकता।

याचिकाकर्ता ने बैंक को कई बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी अंतरिम आदेशों की ओर ध्यान दिलाया, जिनमें कहा गया था कि आधार की अनिवार्यता उचित नहीं है। परंतु बैंक ने बात नहीं मानी, जिसके बाद याचिका जून 2018 में हाईकोर्ट में दाखिल की गई।
अदालत में कार्यवाही
जब यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष पहले पेश हुआ, तब बैंक ने यह बयान दिया कि जस्टिस के.एस. पुत्तस्वामी बनाम भारत सरकार (26 सितंबर 2018) में सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय के बाद वह खाता खोलने के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता नहीं रखता है। यह बयान 29 नवंबर 2018 के न्यायालयीन आदेश में दर्ज किया गया।
उक्त आदेश में मुआवज़े की मांग पर नोटिस जारी करते हुए बैंक को जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई थी, परंतु बैंक ने उसके बाद भी कोई उत्तर दाखिल नहीं किया।
अदालत का विश्लेषण
याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि जनवरी 2018 से जनवरी 2019 तक कंपनी अपने मुंबई स्थित परिसर को किराए पर नहीं दे सकी, जिससे आमदनी नहीं हो पाई। याचिका में ₹10 लाख का मुआवज़ा मांगा गया था। याचिकाकर्ता ने बताया कि कंपनी अब कोई व्यवसाय नहीं करती है और किराया ही 84 वर्षीय निदेशक और उनकी अविवाहित पुत्री की आर्थिक सहायता का एकमात्र साधन था।
अदालत ने माना कि सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2018 के फैसले के बाद आधार की अनिवार्यता हट चुकी थी और बैंक को खाता खोलने में देरी नहीं करनी चाहिए थी। हालांकि ₹10 लाख की मांग को “अतिशयोक्तिपूर्ण” बताया गया।
अदालत ने कहा:
“26 सितंबर 2018 के बाद बैंक द्वारा खाता न खोलने का कोई औचित्य नहीं था। खाता जनवरी 2019 में खोला गया, अतः इस अवधि के लिए मुआवज़ा उचित है।”
अंतिम आदेश
अदालत ने निर्देश दिया:
“उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हम प्रतिवादी बैंक को आदेश देते हैं कि वह याचिकाकर्ता को ₹50,000/- की क्षतिपूर्ति इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के आठ सप्ताह के भीतर अदा करे।”
याचिका उपर्युक्त निर्देशों के साथ निस्तारित कर दी गई। पक्षकारों को आदेश की प्रमाणित प्रति के आधार पर कार्यवाही करने की अनुमति दी गई है।