बॉम्बे हाईकोर्ट ने मेयर बंगले पर बाला साहेब ठाकरे स्मारक को दी मंजूरी, याचिकाएं खारिज

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के स्मृति में दादर स्थित शिवाजी पार्क के पुराने मेयर बंगले पर स्मारक बनाए जाने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह निर्णय न तो अवैध है और न ही इसमें कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि है।

मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मर्ने की खंडपीठ ने कहा कि बाला साहेब ठाकरे राष्ट्रीय स्मारक के लिए मेयर बंगले को आवंटित करने का सरकारी निर्णय महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर योजना अधिनियम (MRTP एक्ट) और पर्यावरणीय नियमों के अनुसार है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि यह परियोजना महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (MCZMA) की मंजूरी के बाद ही आगे बढ़ाई गई, क्योंकि यह भूखंड CRZ-II क्षेत्र में आता है।

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2017 में दायर याचिकाओं में यह आपत्ति उठाई गई थी कि ऐतिहासिक रूप से सार्वजनिक सुविधा व जिमखाना रहे मेयर बंगले का उपयोग बदलकर उसे विकास योजना 2034 के तहत ‘ग्रीन ज़ोन’ से ‘रेजिडेंशियल’ घोषित करना मनमाना, गैरकानूनी और जनसुनवाई के बिना किया गया कदम है। वरिष्ठ अधिवक्ता सुनीप सेन और डॉ. उदय वारुंजीकर ने स्मारक के लिए ₹100 करोड़ का बजट आवंटित किए जाने को अत्यधिक बताया और पूरी प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाया।

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हालांकि, अदालत ने इन तर्कों को खारिज कर दिया और कहा कि भूमि उपयोग से संबंधित निर्णय और स्मारक निर्माण सरकार की नीतिगत सीमा में आते हैं और जब तक कोई अवैधता या प्रक्रियात्मक दोष न हो, न्यायिक हस्तक्षेप उचित नहीं है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह भूमि अब भी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) की ही है, जिसे एक सार्वजनिक न्यास को ₹1 वार्षिक किराए पर 30 वर्षों के लिए पट्टे पर दिया गया है।

अदालत ने कहा, “भूमि का चयन और न्यास का गठन सरकारी नीति के दायरे में आता है। पुनर्वर्गीकरण में कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं पाई गई।” अदालत ने यह भी बताया कि स्मारक का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है और इससे मेयर बंगले की विरासत महत्व को कोई क्षति नहीं पहुंची है।

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सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि यह स्मारक महाराष्ट्र के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में बाला साहेब ठाकरे के योगदान को सम्मान देने के उद्देश्य से है और इसके पीछे जनभावना जुड़ी हुई है।

राज्य सरकार की प्रक्रिया और पर्यावरणीय अनुपालन में कोई उल्लंघन न पाते हुए, अदालत ने इन याचिकाओं को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया।

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