बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को 2012 पुणे सीरियल ब्लास्ट मामले में आरोपी फारूक शौकत बगवान को जमानत दे दी। अदालत ने कहा कि सह-आरोपी को पहले ही जमानत मिल चुकी है और मुकदमे के लंबे समय तक पूरा न होने के कारण बगवान को भी रिहाई का हक है।
न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि बगवान 12 साल से अधिक समय से जेल में है और अब तक केवल 170 गवाहों में से 27 की ही गवाही पूरी हो सकी है, जिससे जल्द मुकदमे के निपटारे की संभावना कम है।
बगवान की ओर से अधिवक्ता मुबीन सोलकर ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को भी जमानत मिलनी चाहिए क्योंकि सह-आरोपी मुनिब इकबाल मेमन को सितंबर 2024 में पहले ही जमानत मिल चुकी है। उन्होंने कहा कि इतनी लंबी अवधि तक बिना मुकदमे के निष्कर्ष तक पहुँचे जेल में रखना अन्यायपूर्ण है।

अतिरिक्त लोक अभियोजक विनोद चाटे ने जमानत का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि बगवान ने अपने कंप्यूटर पर फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे जिनका इस्तेमाल मेमन ने नकली सिम कार्ड लेने के लिए किया। साथ ही, उन्होंने अपनी दुकान का परिसर सह-आरोपियों को ब्लास्ट की साजिश रचने के लिए उपलब्ध कराया।
अदालत ने कहा कि बगवान की भूमिका मेमन से अधिक गंभीर नहीं है और इसलिए समानता के आधार पर उसे भी राहत दी जानी चाहिए। खंडपीठ ने यह भी रेखांकित किया कि बगवान का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत आरोप नहीं लगाया गया है।
1 अगस्त 2012 को पुणे में पांच लो-इंटेंसिटी धमाके हुए थे, जिनमें एक व्यक्ति घायल हुआ और पूरे शहर में दहशत फैल गई। जंगली महाराज रोड पर एक्सिस बैंक के पास एक साइकिल में रखा बम बम निरोधक दस्ते ने समय रहते निष्क्रिय कर दिया था।
यह मामला पहले डेक्कन पुलिस थाने में दर्ज हुआ था और बाद में महाराष्ट्र एंटी-टेररिज़्म स्क्वॉड (एटीएस) को सौंपा गया। जांच में सामने आया कि यह ब्लास्ट इंडियन मुजाहिदीन के ऑपरेटिव क़तील सिद्दीकी की यरवदा जेल में मौत का बदला लेने की साजिश का हिस्सा थे।
बगवान को 26 दिसंबर 2012 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह मुंबई सेंट्रल जेल में न्यायिक हिरासत में है। 2021 में एमसीओसीए अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट का रुख किया था।