सिनेमा हॉलों और ऑनलाइन टिकट बुकिंग प्लेटफॉर्म्स को बड़ी राहत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें थिएटरों को ऑनलाइन टिकट बुकिंग पर सुविधा शुल्क (कन्वीनियंस फीस) वसूलने से प्रतिबंधित किया गया था। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया और कहा कि इसका कोई वैधानिक आधार नहीं है।
जस्टिस महेश सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने 2013 और 2014 में राज्य के रेवेन्यू कमिश्नर द्वारा जारी आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) का उल्लंघन बताया, जो नागरिकों को कोई भी व्यवसाय या पेशा अपनाने का मौलिक अधिकार देता है।
कोर्ट ने कहा, “विवादित सरकारी आदेश याचिकाकर्ताओं को उनके ग्राहकों से सुविधा शुल्क लेने से रोककर उनके अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। यदि व्यापारियों को अपने व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं को तय करने की स्वतंत्रता नहीं दी जाएगी, तो आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाएंगी।”

यह फैसला पीवीआर लिमिटेड, बुकमाईशो के ऑपरेटर बिग ट्री एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड और एफआईसीसीआई-मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिकाओं पर आया, जिन्होंने राज्य सरकार के आदेशों को कानूनी चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ऑनलाइन बुकिंग एक वैकल्पिक सेवा है, जिसके लिए तकनीकी और अवसंरचनागत निवेश की आवश्यकता होती है। यदि कोई ग्राहक सुविधा शुल्क नहीं देना चाहता, तो वह टिकट खिड़की से टिकट खरीद सकता है। कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि अंतिम निर्णय उपभोक्ता का होता है और राज्य सरकार के पास इस सेवा में हस्तक्षेप करने का वैधानिक अधिकार नहीं है।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार के आदेशों को कभी भी लागू नहीं किया गया क्योंकि जुलाई 2014 से ही इन पर रोक लगी हुई थी और तब से थिएटर मालिक सुविधा शुल्क वसूलते रहे हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया, “सरकार के आदेशों का कोई वैधानिक आधार नहीं है, इसलिए वे अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत याचिकाकर्ताओं के अधिकारों पर रोक लगाने का औचित्य नहीं दे सकते।”