इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि अग्रिम जमानत की पहली याचिका दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत अस्वीकृत हुई थी और उसके बाद भारत नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) लागू हो चुकी है, तो नई वैधानिक व्यवस्था और बदले हुए परिस्थितियों के आधार पर दूसरी अग्रिम जमानत याचिका विचारणीय है।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने 3 जुलाई 2025 को अब्दुल हमीद बनाम राज्य बनाम उत्तर प्रदेश मामले में यह निर्णय दिया। यह मामला क्रिमिनल मिस. एंटिसिपेटरी बेल एप्लिकेशन संख्या 2756/2025 के अंतर्गत दर्ज किया गया था।
मामला संक्षेप में
13 अगस्त 2011 को थाना देवरनिया, जिला बरेली के गांव गिर्दरपुर में हुई एक गोलीबारी की घटना में ज़िला पंचायत चुनावों और ठेकेदारी विवाद के चलते कथित रूप से अब्दुल हमीद सहित अन्य पर हमला करने और फायरिंग करने का आरोप लगा था। इस हमले में शिकायतकर्ता फिरोज के चाचा ग़ुड्डू उर्फ ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु हो गई थी।

हालाँकि, पुलिस जांच में अब्दुल हमीद के खिलाफ आरोप असत्य पाए गए और उन्हें चार्जशीट में नामित नहीं किया गया। बाद में, वर्ष 2019 में गवाही के दौरान शिकायतकर्ता द्वारा उनके खिलाफ बयान देने के आधार पर धारा 319 CrPC के तहत उन्हें समन कर मुकदमे में शामिल किया गया।
पहली अग्रिम जमानत याचिका वर्ष 2023 में CrPC की धारा 438(6) में निहित बाध्यता के कारण खारिज कर दी गई थी क्योंकि धारा 302 आईपीसी के तहत अपराधों में अग्रिम जमानत वर्जित थी।
याचिकाकर्ता की दलीलें
अब्दुल हमीद की ओर से प्रस्तुत याचिका में कहा गया कि:
- पुलिस जांच में उन्हें निर्दोष पाया गया था।
- घायल चश्मदीद गवाहों ने उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया।
- नई कानून BNSS में धारा 438(6) जैसी कोई रोक नहीं है।
- BNSS की अधिसूचना के बाद परिस्थितियां बदली हैं और अब गिरफ्तारी की आशंका फिर से उत्पन्न हुई है।
- याचिकाकर्ता 78 वर्षीय बुजुर्ग हैं, फेफड़ों की विफलता सहित अन्य रोगों से पीड़ित हैं, और कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
राज्य सरकार की आपत्ति
राज्य की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि:
- यह मामला CrPC के तहत ही संचालित है और BNSS की व्यवस्था पूर्ववर्ती मामलों पर लागू नहीं हो सकती।
- याचिकाकर्ता की पहली याचिका को कानून के स्पष्ट प्रावधानों के तहत खारिज किया गया था।
- CrPC की धारा 438(6) अब भी उत्तर प्रदेश में प्रभावी है और BNSS में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जिससे यह माना जाए कि वह प्रावधान निरस्त हो गया है।
- याचिकाकर्ता के विरुद्ध वारंट और उद्घोषणा जारी हो चुकी है जिससे उनका कानून से बचने का प्रयास स्पष्ट है।
न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष
न्यायालय ने चार प्रमुख प्रश्नों पर विचार किया:
- क्या BNSS के तहत दूसरी अग्रिम जमानत याचिका विचारणीय है?
- क्या BNSS के प्रावधान पूर्ववर्ती अपराधों पर लागू होते हैं?
- क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थगन हटाए जाने और नई वारंट की स्थिति ‘परिवर्तित परिस्थितियाँ’ मानी जा सकती हैं?
- क्या उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दी जा सकती है?
न्यायालय ने कहा कि BNSS की धारा 482 में CrPC की तरह धारा 438(6) जैसा कोई प्रतिबंध नहीं है। संसद ने यह प्रावधान जानबूझकर नहीं रखा, जो यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी गई है।
न्यायालय ने Kalyan Chandra Sarkar v. Rajesh Ranjan, Hitendra Vishnu Thakur, और Deepu & Others v. State of U.P. जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि प्रक्रिया संबंधी कानून पीछे की तारीख से लागू होते हैं और यह याचिकाकर्ता के पक्ष में लाभकारी विधि है।
कोर्ट ने माना कि:
- याचिकाकर्ता की पहली याचिका केवल औपचारिक बाधा के कारण खारिज की गई थी।
- BNSS की अधिसूचना और नई गिरफ्तारी वारंट की स्थिति ‘परिवर्तित परिस्थितियाँ’ हैं।
- मामले में अब तक कोई नया साक्ष्य सामने नहीं आया है जो याचिकाकर्ता के खिलाफ हो।
- याचिकाकर्ता बुजुर्ग हैं, गंभीर बीमार हैं, और भागने की संभावना नहीं है।
आदेश
अतः कोर्ट ने अब्दुल हमीद को अग्रिम जमानत प्रदान करते हुए कहा कि यदि उन्हें गिरफ्तार किया जाता है तो उन्हें ₹1,00,000 के निजी मुचलके व दो जमानतदारों के साथ रिहा किया जाए। साथ ही कुछ शर्तें लगाई गईं:
- उत्तर प्रदेश से बाहर जाने के लिए कोर्ट की अनुमति आवश्यक होगी।
- पासपोर्ट जमा कराना होगा या उसकी अनुपस्थिति की घोषणा देनी होगी।
- गवाहों से संपर्क या साक्ष्य से छेड़छाड़ नहीं की जाए।
- मोबाइल नंबर जांच अधिकारी को देना होगा।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल अग्रिम जमानत याचिका के निस्तारण हेतु है और इसका प्रभाव मामले के मेरिट पर नहीं होगा।
मामला: अब्दुल हमीद बनाम राज्य बनाम उत्तर प्रदेश
मामला संख्या: एंटिसिपेटरी बेल एप्लिकेशन संख्या 2756/2025