इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के निरसन और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2019 में की गई धारा 438 CrPC में संशोधन अब लागू नहीं रह गया है। न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की एकलपीठ ने यह निर्णय आरोपी रमन सहनी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
यह मामला अपराध संख्या 124/2021 से संबंधित है, जिसमें याची रमन सहनी पर यूपी गिरोहबंदी एवं समाजविरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 की धाराओं 2 व 3 के तहत कोतवाली, जनपद सीतापुर में मुकदमा पंजीकृत है। याची ने धारा 438 CrPC के अंतर्गत अग्रिम जमानत की मांग की थी।
वकीलों की उपस्थिति:
याची की ओर से श्री सुशील कुमार सिंह एवं श्री आयुष सिंह, अधिवक्ता उपस्थित हुए। वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आई.बी. सिंह ने भी श्री अविनाश सिंह विषेण की सहायता से याची की ओर से पक्ष रखा।
राज्य की ओर से श्री वी.के. सिंह, सरकारी अधिवक्ता, श्री शिवेन्द्र शिवम सिंह राठौर, श्री अनिरुद्ध कुमार सिंह (एजीए-1), श्री वैभव श्रीवास्तव तथा श्री निर्मल पांडेय, सहायक सरकारी अधिवक्ता उपस्थित हुए।
शिकायतकर्ता की ओर से श्री श्रीनिवास बाजपेयी अधिवक्ता उपस्थित हुए।
अदालत द्वारा नियुक्त अमीकस क्यूरी श्री गौरव मेहरोत्रा ने भी पैरवी की, जिनकी सहायता अधिवक्तागण श्री उत्सव मिश्रा, अकबर अहमद, मधुर झावर, मारिया फातिमा, अलीना, चिन्मय मिश्रा, रवि सिंह, हर्षवर्धन मेहरोत्रा, रमेन्द्र यादव, श्रिया अग्रवाल, आहद एवं अंकित त्रिपाठी ने की।
दलीलें और आपत्तियाँ:
राज्य सरकार ने दो प्रमुख आपत्तियाँ उठाईं—
- याची ने सत्र न्यायालय में याचिका दाखिल किए बिना सीधे हाईकोर्ट का रुख किया, जो कि Ankit Bharti v. State of U.P. (2020 SCC OnLine All 1949) के अनुसार असंवैधानिक बताया गया।
- वर्ष 2019 के उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम के तहत गिरोहबंदी अधिनियम के मामलों में अग्रिम जमानत की अनुमति नहीं है।
याची की ओर से कहा गया कि शिकायतकर्ता प्रभावशाली और राजनीतिक रूप से सक्षम है, जिसने पहले भी एक ही प्रकृति की 15 से अधिक एफआईआर कराई हैं और जान का खतरा बना हुआ है, अतः निचली अदालत जाना संभव नहीं था।
अदालत का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह ने पहली आपत्ति खारिज करते हुए कहा कि Vinod Kumar एवं Ankit Bharti मामलों के अनुसार विशेष परिस्थितियों में उच्च न्यायालय सीधे अग्रिम जमानत याचिका पर विचार कर सकता है, और याची ने खतरे और प्रताड़ना के पर्याप्त कारण बताए हैं।
दूसरे मुद्दे पर, कोर्ट ने CrPC की धारा 438 (जैसा कि U.P. Amendment Act 2019 द्वारा संशोधित है) और BNSS 2023 की धारा 482 की तुलनात्मक व्याख्या की और स्पष्ट किया कि दोनों प्रावधान समान नहीं हैं और इसलिए राज्य संशोधन नई संहिता में स्वतः लागू नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने कहा:
“यह मामला ऐसा नहीं है जहाँ निरस्त किए गए धारा 438 CrPC को हूबहू BNSS की धारा 482 में दोहराया गया हो जिससे राज्य संशोधन स्वतः ही लागू हो जाए।”
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 254 का हवाला देते हुए कहा कि संसद द्वारा पारित नया कानून यदि पूर्ववर्ती केंद्रीय कानून को निरस्त कर देता है, तो राज्य द्वारा उसी विषय पर किया गया संशोधन भी स्वतः निरस्त हो जाएगा, चाहे उसे राष्ट्रपति की सहमति क्यों न मिली हो।
न्यायालय ने Zaverbhai Amaidas v. State of Bombay और T. Barai v. Henry Ah Hoe जैसे संविधान पीठ निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“यदि केंद्र और राज्य दोनों एक ही विषय पर कानून बनाते हैं और वे एक साथ लागू नहीं रह सकते, तो राज्य कानून स्वतः निष्प्रभावी हो जाएगा, भले ही यह स्पष्ट रूप से निरस्त न किया गया हो।”
निष्कर्ष और आदेश:
कोर्ट ने राज्य की प्रारंभिक आपत्तियों को अस्वीकार करते हुए कहा कि याची की अग्रिम जमानत याचिका विचारणीय है। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया कि BNSS 2023 के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार का वर्ष 2019 का संशोधन अधिनियम (जिससे गिरोहबंदी जैसे मामलों में अग्रिम जमानत निषिद्ध की गई थी) अब प्रभावी नहीं रह गया है।
मामले का शीर्षक: रमन सहनी बनाम राज्य उत्तर प्रदेश
मामला संख्या: अग्रिम जमानत याचिका संख्या 1710 / 2024