सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि बिहार में जारी विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया ‘मतदाता हितैषी’ प्रतीत होती है, क्योंकि मतदाता अब शामिल होने के लिए 11 दस्तावेज़ों में से कोई एक प्रस्तुत कर सकते हैं, जबकि पहले संक्षिप्त संशोधन में केवल 7 दस्तावेज़ मान्य थे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की, जब वह चुनाव आयोग (ECI) के 24 जून के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आयोग ने चुनावी राज्य बिहार में SIR कराने का निर्णय लिया था।
पीठ ने कहा, “राज्य में पहले हुए संक्षिप्त संशोधन में दस्तावेज़ों की संख्या 7 थी और SIR में यह 11 हो गई है, जो इसे मतदाता हितैषी बनाती है। हम आपकी इस दलील को समझते हैं कि आधार को न मानना बहिष्करणकारी है, लेकिन दस्तावेज़ों की अधिक संख्या वास्तव में समावेशी है।” अदालत ने स्पष्ट किया कि मतदाता को पात्रता सिद्ध करने के लिए इन 11 दस्तावेज़ों में से केवल एक ही देना होगा।

याचिकाकर्ताओं ने जताई सीमित उपलब्धता की चिंता
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने अदालत के आकलन से असहमति जताई। उनका कहना था कि भले ही दस्तावेज़ों की संख्या बढ़ी हो, लेकिन बिहार की आबादी में इनकी उपलब्धता बेहद सीमित है।
उन्होंने बताया कि पासपोर्ट, जो मान्य दस्तावेज़ों में से एक है, राज्य में केवल 1 से 2 प्रतिशत लोगों के पास है और बिहार में स्थायी निवासी प्रमाणपत्र जारी करने की कोई व्यवस्था नहीं है। सिंघवी ने कहा, “अगर हम बिहार की आबादी के पास उपलब्ध दस्तावेज़ देखें, तो कवरेज बहुत कम दिखाई देता है।”
इस पर पीठ ने कहा कि 36 लाख पासपोर्ट धारकों का कवरेज “अच्छा” प्रतीत होता है और आमतौर पर ऐसी सूचियां विभिन्न सरकारी विभागों से परामर्श के बाद इस तरह बनाई जाती हैं कि अधिक से अधिक लोगों को कवर किया जा सके।
पहले की सुनवाई में अदालत की टिप्पणियां
12 अगस्त को अदालत ने SIR के लिए आधार और मतदाता पहचान पत्र को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण मानने से इनकार करने के चुनाव आयोग के फैसले का समर्थन किया था। अदालत ने कहा था कि मतदाता सूची में नाम शामिल करने या हटाने का अधिकार आयोग के अधिकार-क्षेत्र में आता है।
पीठ ने यह भी कहा था कि इस संशोधन प्रक्रिया को लेकर जारी विवाद “ज्यादातर भरोसे की कमी का मुद्दा” है। चुनाव आयोग का कहना था कि बिहार के लगभग 6.5 करोड़ मतदाताओं को कोई दस्तावेज़ देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे या उनके माता-पिता 2003 की मतदाता सूची में पहले से शामिल हैं।