अगले तीन वर्षों तक नए लॉ कॉलेज नहीं खुलेंगे: बार काउंसिल ऑफ इंडिया

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने देशभर में नए विधि शिक्षा केंद्रों (Centres of Legal Education) की स्थापना पर तीन साल की रोक लगाने का ऐलान किया है। इसका उद्देश्य निम्न-स्तरीय संस्थानों की बढ़ती संख्या को रोकना और विधि शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूत करना है। यह रोक Rules of Legal Education, Moratorium (Three-Year Moratorium) with respect to Centers of Legal Education, 2025 के तहत लगाई गई है और लागू होने की तारीख से लगातार तीन वर्षों तक प्रभावी रहेगी।

मोराटोरियम अवधि में कोई भी नया लॉ कॉलेज शुरू नहीं किया जा सकेगा। मौजूदा संस्थान भी बिना BCI की पूर्व लिखित अनुमति के नए सेक्शन, कोर्स या बैच शुरू नहीं कर सकेंगे। किसी भी प्रस्ताव को कड़े परीक्षण और निरंतर अनुपालन जांच के बाद ही मंजूरी दी जाएगी। हालांकि, जिन लंबित आवेदनों ने लागू होने से पहले आवश्यक चरण पूरे कर लिए हैं, उन्हें मौजूदा नियमों के तहत आगे बढ़ाया जाएगा।

रोक के पीछे कारण

BCI ने बताया कि खराब प्रबंधन वाले कॉलेजों की बेतहाशा बढ़ोतरी, राज्य सरकारों द्वारा नियमित रूप से ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ (NOC) जारी करना, विश्वविद्यालयों द्वारा बिना उचित निरीक्षण के संबद्धता देना और योग्य शिक्षकों की कमी जैसे कारणों से विधि शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई है। देश में पहले से करीब 2,000 लॉ कॉलेज संचालित हो रहे हैं, इसलिए परिषद का मानना है कि मौजूदा संस्थागत क्षमता पर्याप्त है और अब ध्यान गुणवत्ता सुधार व प्रणालीगत सुधार पर होना चाहिए।

कानूनी आधार और पृष्ठभूमि

यह विनियमन अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 7, 7(1)(h), 7(1)(i), 24(1)(c)(iii) और 49(1)(af), (ag), (d) के तहत जारी किया गया है। इससे पहले 2019 में भी अस्थायी रोक लगाई गई थी, जिसके बाद यह मुद्दा पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 4 दिसंबर 2020 के निर्णय और 16 जून 2021 के BCI बयान तक पहुंचा। मौजूदा विनियमन ने अब इन कदमों को बाध्यकारी नियम के रूप में औपचारिक रूप दिया है।

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अपवाद

मोराटोरियम में सीमित अपवाद रखे गए हैं, जैसे—

  • केवल सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए समर्पित संस्थान
  • दूरस्थ, आदिवासी या आकांक्षी जिलों में प्रस्ताव
  • दिव्यांग व्यक्तियों के लिए डिज़ाइन किए गए कोर्स
  • संसद या विधानमंडल द्वारा स्थापित राज्य या केंद्रीय विश्वविद्यालय, या सक्षम मंत्रालय द्वारा अनुशंसित प्रस्ताव

इन मामलों में भी वैध NOC, पूर्व विश्वविद्यालय संबद्धता, पर्याप्त अवसंरचना, फैकल्टी की संख्या और ‘आवश्यकता-आधारित स्थापना’ मानकों का अनुपालन अनिवार्य होगा।

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संक्रमणकालीन और प्रवर्तन उपाय

केवल सशर्त स्वीकृति पाने वाले संस्थानों को संचालन शुरू करने से पहले सभी मानदंड पूरे करने होंगे। पहले से निर्धारित चरणों से गुजर चुके लंबित आवेदन विचार के योग्य रहेंगे। मौजूदा संस्थानों का निरीक्षण कड़ा होगा और नियमों के उल्लंघन पर BCI मान्यता वापस ले सकता है या डिग्रियों को अमान्य घोषित कर सकता है, जिससे स्नातक अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24 के तहत नामांकन के योग्य नहीं रहेंगे। उल्लंघन करने वालों पर अनुशासनात्मक, दीवानी या आपराधिक कार्रवाई भी हो सकती है।

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समीक्षा और वरीयता

इस विनियमन की हर साल समीक्षा होगी और नीति आवश्यकता के अनुसार इसे बढ़ाया, संशोधित या समाप्त किया जा सकता है। यह किसी भी परस्पर विरोधी BCI या अन्य प्राधिकरण के प्रस्ताव, परिपत्र या अधिसूचना को निरस्त करेगा।

राज्य सरकारों, विश्वविद्यालयों और लॉ कॉलेजों से सहयोग की अपील करते हुए BCI ने स्पष्ट किया कि यह रोक विधि शिक्षा के मानकों को ऊंचा उठाने, पेशे की गरिमा बनाए रखने और न्याय व्यवस्था में जनता का विश्वास कायम रखने के लिए है।

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