भारतीय बार काउंसिल (BCI) ने एक फर्जी दस्तावेज को लेकर सख्त चेतावनी जारी की है, जिसे गलत तरीके से काउंसिल से जोड़ा गया है। यह फर्जी दस्तावेज, जिसका शीर्षक “आधिकारिक अधिसूचना – भारत में वकीलों के लिए अनिवार्य न्यूनतम शुल्क संरचना” है, दावा करता है कि 1 मार्च 2025 से वकीलों के लिए न्यूनतम शुल्क संरचना लागू की जाएगी। हालांकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने स्पष्ट किया है कि इस तरह का कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है।
आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, यह दस्तावेज पूरी तरह से जालसाजी है और इसे जानबूझकर कानूनी समुदाय और आम जनता को गुमराह करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। बीसीआई ने जोर देकर कहा कि यह फर्जी अधिसूचना एक आधिकारिक निर्देश के आवश्यक तत्वों जैसे वैध हस्ताक्षर, संदर्भ संख्या और प्रक्रिया संबंधी दस्तावेजों से रहित है। इसमें “कोई हस्ताक्षर आवश्यक नहीं” जैसी पंक्ति का उपयोग प्रमाणिकता से बचने के उद्देश्य से किया गया है।
बार काउंसिल ने इस फर्जी अधिसूचना के प्रसार की कड़ी निंदा की है और कहा है कि इसमें बार काउंसिल के नाम और पते का दुरुपयोग किया गया है, जिससे कानूनी पेशे की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंच सकता है। काउंसिल ने यह भी चेतावनी दी कि यह कृत्य एक गंभीर आपराधिक अपराध है और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
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बीसीआई ने मीडिया और आम जनता से इस फर्जी दस्तावेज को साझा करने से बचने की अपील की है, क्योंकि इसका प्रसार गलत सूचना और भ्रम को बढ़ावा दे सकता है। साथ ही, पत्रकारों को भी सलाह दी गई है कि वे इस तरह के किसी भी दावे की रिपोर्टिंग से पहले बार काउंसिल से सीधे पुष्टि करें।
बार काउंसिल के प्रधान सचिव श्रीमंतो सेन ने अपने बयान में कहा कि काउंसिल कानूनी पेशे की अखंडता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और इस तरह की धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
भारतीय बार काउंसिल ने इस जालसाजी के पीछे शामिल लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। बीसीआई ने वकीलों और जनता से अपील की है कि वे कानूनी नियमों और पेशेवर दिशानिर्देशों से संबंधित सटीक जानकारी के लिए केवल आधिकारिक स्रोतों पर ही भरोसा करें।