बार एसोसिएशन ‘राज्य’ नहीं हैं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कोल्हापुर बार चुनाव नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कोल्हापुर डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन द्वारा जारी एक नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें केवल उन्हीं सदस्यों को आगामी चुनाव में मतदान की अनुमति दी गई थी, जिन्होंने 1 अप्रैल 2025 तक अपनी सदस्यता फीस चुका दी थी। न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति अद्वैत एम. सेठना की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि बार एसोसिएशन संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘राज्य’ नहीं हैं और इस कारण से उनके आंतरिक विवादों में अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका विचारणीय नहीं है।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता अभिजीत अप्पासाहेब बच्छे-पाटिल, हरीशचंद्र तडके, अमरुत राणोजी और बालासाहेब कांदेकऱ ने याचिका संख्या 5368/2025 के तहत कोल्हापुर बार एसोसिएशन के 1 अप्रैल 2025 के नोटिस को चुनौती दी थी। इस नोटिस में कहा गया था कि जो सदस्य 1 अप्रैल के बाद फीस जमा करेंगे, वे आगामी चुनाव में मतदान नहीं कर सकेंगे।

याचिकाकर्ताओं ने याचिका में निम्नलिखित राहतें मांगीं:

“…दिनांक 01.04.2025 का कोल्हापुर डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन का नोटिस रद्द किया जाए… तथा 01.04.2025 के बाद फीस जमा करने वाले सदस्यों को भी आगामी चुनाव में मतदान की अनुमति दी जाए।”

कानूनी मुद्दा और पक्षों की दलीलें

मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या कोल्हापुर बार एसोसिएशन संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत ‘राज्य’ की परिभाषा में आता है?

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा नियामक नियंत्रण रखता है, इसलिए कोल्हापुर बार एसोसिएशन ‘राज्य’ का अंग माना जाना चाहिए। इसके समर्थन में उन्होंने श्री चंद्रकांत बनाम कर्नाटका स्टेट बार काउंसिल और पी.के. दाश बनाम बार काउंसिल ऑफ दिल्ली जैसे निर्णयों का हवाला दिया।

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कोर्ट का विश्लेषण

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं का तर्क अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि बार एसोसिएशन महज वकीलों का स्वैच्छिक समूह होते हैं और उनका संचालन उनके अपने उपनियमों के अनुसार होता है।

कोर्ट ने कहा:

“बार एसोसिएशन सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 या ट्रस्ट अधिनियम के तहत पंजीकृत संस्थाएं होती हैं… इन पर सरकार या बार काउंसिल का कोई गहन या व्यापक नियंत्रण नहीं होता।”

पीठ ने आगे कहा:

“यदि हम याचिकाकर्ताओं की इस याचिका को सुनवाई योग्य मान लें, तो राज्य के प्रत्येक जिले और तालुका में मौजूद बार एसोसिएशनों से संबंधित किसी भी आंतरिक विवाद को लेकर हाईकोर्ट को रिट याचिका सुननी पड़ेगी — जिससे अराजक स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।”

निर्णय

अदालत ने याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि:

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“हम इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हैं कि अनुच्छेद 226 के तहत बार एसोसिएशन और उसके सदस्य के बीच के विवाद पर कोई रिट याचिका विचारणीय नहीं है।”

हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सिविल कोर्ट में वैकल्पिक उपाय अपनाने की छूट दी:

“हम याचिकाकर्ताओं को यह स्वतंत्रता प्रदान करते हैं कि वे यदि चाहें तो उपयुक्त सिविल कोर्ट में जाकर अपने विवाद का निवारण प्राप्त करें।”

याचिका खारिज कर दी गई और कोई लागत नहीं लगाई गई।

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