बांके बिहारी मंदिर प्रशासन पर यूपी अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची प्रबंधन समिति

मथुरा स्थित प्रतिष्ठित ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर की प्रबंधन समिति ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित उस हालिया अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसके माध्यम से राज्य सरकार को मंदिर के प्रशासनिक नियंत्रण का अधिकार मिल गया है। समिति ने अपनी याचिका में इसे न्यायिक कार्यवाही को दरकिनार करने की असंवैधानिक कोशिश बताया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता तन्वी दुबे के माध्यम से दायर याचिका में 350 सदस्यों वाली मंदिर प्रबंधन समिति और सेवायत रजत गोस्वामी ने कहा है कि जब एक संबंधित मामला अभी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है, तब अध्यादेश लाकर राज्य सरकार ने दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई की है।

याचिका में कहा गया है कि मंदिर निधि का उपयोग कर पांच एकड़ भूमि खरीदने का मुद्दा पहले ही 8 नवंबर 2023 को हाईकोर्ट द्वारा निपटाया जा चुका है, जिसमें राज्य को मंदिर निधि के उपयोग की अनुमति नहीं दी गई थी। इसके बावजूद राज्य सरकार ने उस आदेश के खिलाफ अपील करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित एक अन्य याचिका (गिरिराज सेवा समिति से संबंधित) में पक्षकार बनने की कोशिश की।

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सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 के आदेश में राज्य को केवल पांच एकड़ भूमि खरीदने के लिए मंदिर निधि का उपयोग करने की अनुमति दी थी, वो भी इस शर्त पर कि जमीन भगवान (देवता) या ट्रस्ट के नाम रजिस्टर्ड हो और उसका उपयोग बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के विकास के लिए किया जाए। लेकिन मंदिर समिति का आरोप है कि इस आदेश से पहले न तो मंदिर प्रशासन को और न ही सेवायतों को पक्षकार बनाया गया।

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याचिका में इस अध्यादेश को संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत ‘शक्ति का दुरुपयोग’ बताया गया है और कहा गया है कि यह मंदिर प्रशासन को लेकर हाईकोर्ट में लंबित जनहित याचिका को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास है। समिति ने आरोप लगाया कि अध्यादेश की समयावधि और उसका संदर्भ राज्य सरकार और राज्यपाल द्वारा दुर्भावनापूर्ण ढंग से कानून बनाने की ओर इशारा करता है।

याचिका में कहा गया है, “यह अध्यादेश शक्ति का दिखावटी प्रयोग है जो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। यह न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है क्योंकि यह एक विचाराधीन मामले में हस्तक्षेप करता है।”

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यह मामला सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

यह विवाद राज्य सरकार द्वारा बांके बिहारी मंदिर क्षेत्र में एक बड़े विकास परियोजना को लागू करने की कोशिश से उपजा है। सरकार ने मंदिर क्षेत्र की आधारभूत संरचना और सुरक्षा संबंधी समस्याओं का हवाला देते हुए यह कदम उठाया है। केवल 1,200 वर्गफुट में फैले इस मंदिर में रोजाना औसतन 50,000 श्रद्धालु आते हैं, जबकि त्योहारों के दौरान यह संख्या पांच लाख से अधिक हो जाती है।

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प्रस्तावित ‘बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर परियोजना’ — जो उत्तर प्रदेश ब्रज योजना और विकास बोर्ड अधिनियम, 2015 के तहत ब्रज विरासत पहल का हिस्सा है — में पार्किंग, आवास, स्वच्छता और सुरक्षा से जुड़े ढांचागत विकास की परिकल्पना की गई है, जिसकी अनुमानित लागत ₹500 करोड़ से अधिक है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस क्षेत्र में तत्काल विकास की आवश्यकता को स्वीकार कर चुका है और प्रशासनिक मुद्दों के शीघ्र समाधान की आवश्यकता पर बल दे चुका है।

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