पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने न्यायिक नियुक्तियों में कॉलेजियम प्रणाली को बदलने की उठाई मांग

पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने एक बार फिर देश में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को लेकर बहस छेड़ दी है। एक विशेष साक्षात्कार में उन्होंने मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त कर एक नई व्यवस्था की वकालत की, जो सार्वजनिक अपेक्षाओं के अनुरूप हो और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करे।

गौरतलब है कि अश्विनी कुमार के कानून मंत्री रहने के दौरान नेशनल जुडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (एनजेएसी) विधेयक संसद में पेश किया गया था, जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की पारदर्शिता बढ़ाना और कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करना था। हालांकि संसद से पारित होने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एनजेएसी को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होगी।

READ ALSO  कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को राजस्थान के मुख्यमंत्री के खिलाफ केंद्रीय मंत्री शेखावत की मानहानि की शिकायत की जांच करने का निर्देश दिया

अश्विनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता और नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता के बीच संतुलन जरूरी है। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सिद्धांत नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को दबा नहीं सकता।”

Video thumbnail

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर द्वारा दिए गए अल्पमत फैसले का हवाला दिया, जिसमें कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करते हुए एक नया ढांचा अपनाने की बात कही गई थी।

अश्विनी कुमार ने संसद द्वारा पारित कानूनों को चुनौती देने से जुड़े मामलों का भी उल्लेख किया, जैसे कि वक्फ संशोधन अधिनियम, और कहा कि न्यायपालिका को राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। उनके अनुसार, “ऐसे विषयों का समाधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया से होना चाहिए, न कि न्यायिक हस्तक्षेप से।”

उन्होंने हाल ही में न्यायपालिका से जुड़े विवादों का भी जिक्र किया, जैसे कि एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की घटना। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए अपनी आंतरिक प्रणाली को और मजबूत करे।

READ ALSO  न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करने वाले सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट राजस्व बोर्ड के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के अधीन होंगे: इलाहाबाद हाईकोर्ट

यह बयान ऐसे समय में आया है जब न्यायपालिका में जनता का विश्वास मिश्रित है और न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर देश में गहन चर्चा चल रही है। अश्विनी कुमार ने कहा कि अब समय आ गया है कि एनजेएसी जैसे किसी संशोधित मॉडल पर फिर से विचार किया जाए और एक नया संवैधानिक संशोधन लाकर न्यायिक सुधारों पर सार्थक चर्चा शुरू की जाए।

भारत के न्यायिक ढांचे की जटिलताओं के बीच अश्विनी कुमार की यह टिप्पणी न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता के बीच संतुलन साधने की दिशा में एक अहम विचार-विमर्श की शुरुआत मानी जा रही है।

READ ALSO  पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भूमि हस्तांतरणकर्ताओं पर GMADA के अतिरिक्त शुल्क को रद्द किया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles