[अनुच्छेद 21] अपराधी को भी है सम्मानपूर्वक जीवन का अधिकार; पुलिस अपनी सीमाएं नहीं लांघ सकती : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने विजय पाल यादव बनाम ममता सिंह एवं अन्य [विशेष अनुमति याचिका (नागरिक) संख्या 20330/2023] में 26 मार्च 2025 को यह स्पष्ट किया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत हर व्यक्ति — चाहे वह अभियुक्त ही क्यों न हो — को कानून के तहत गरिमा और सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हरियाणा पुलिस के कथित मनमाने व्यवहार की आलोचना की और पुलिस को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि वह कानून की सीमाओं में रहते हुए कार्य करे।

प्रकरण की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता विजय पाल यादव ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश (दिनांक 12 जनवरी 2023) को चुनौती दी थी। उनका आरोप था कि एक पड़ोसी से हुए विवाद के मामले में पुलिस ने उन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया और थाने में शारीरिक प्रताड़ना दी गई। उन्होंने यह भी कहा कि अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य [(2014) 8 SCC 273] में दिए गए दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया।

READ ALSO  अंडरट्रायल कैदी को एक जेल से दूसरी जेल में ट्रांसफर करने का अधिकार सिर्फ कोर्ट के पास है: जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट

याचिकाकर्ता के अनुसार, सुबह 11:24 बजे उनके भाई द्वारा एसपी को एक ईमेल भेजा गया था, जिसमें गिरफ्तारी की शिकायत की गई थी। इसके कुछ ही घंटों बाद दोपहर 1:30 बजे एफआईआर दर्ज कर उन्हें हिरासत में ले लिया गया, जो प्रतिशोध की कार्रवाई प्रतीत होती है।

Video thumbnail

पक्षकारों की दलीलें:
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पुलिस ने बिना वैधानिक प्रक्रिया का पालन किए बलपूर्वक कार्रवाई की। उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 41(1)(b)(ii) के तहत पुलिस द्वारा भरे गए चेकलिस्ट को औपचारिक और सतही करार दिया।

हरियाणा राज्य ने एक अनुपालन हलफनामा प्रस्तुत किया और अदालत के पूर्व आदेश के पालन में हरियाणा के पुलिस महानिदेशक स्वयं उपस्थित हुए।

न्यायालय के विचार और टिप्पणियां:
सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखे गए तथ्यों का परीक्षण करने के बाद कहा:

READ ALSO  Supreme Court Rejects Review Plea on Electoral Bond Scheme Decision

“भले ही कोई व्यक्ति ‘अपराधी’ हो, कानून की दृष्टि में उसके साथ वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार व्यवहार किया जाना अनिवार्य है। हमारे देश में कानून के तहत एक ‘अपराधी’ को भी उसकी शारीरिक गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कुछ संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त हैं। इस मामले में जब याचिकाकर्ता को पुलिस ने उठाया, तब वह केवल एक अभियुक्त था। आम व्यक्ति से सीमा लांघने की अपेक्षा की जा सकती है, लेकिन पुलिस से नहीं।”

अदालत ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत चेकलिस्ट पर भी असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इसका भरना केवल औपचारिकता की तरह प्रतीत होता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भविष्य में ऐसे कृत्य न दोहराए जाएं और संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को भी ऐसे दस्तावेजों को यथार्थ जांच के बाद ही स्वीकार करना चाहिए।

निर्देश और निष्कर्ष:
न्यायालय ने संबंधित पुलिस अधिकारियों को भविष्य में सतर्क रहने की चेतावनी दी और हरियाणा के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। न्यायालय ने कहा:

READ ALSO  भक्त से बलात्कार के आरोपी साधु को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया दोषी

“वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसे किसी भी अनुचित कृत्य के प्रति शून्य सहनशीलता रखनी चाहिए।”

याचिका यह कहकर समाप्त कर दी गई कि संबंधित आपराधिक मामला पहले से ही सक्षम न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, और पक्षकारों को विधिक उपचार की स्वतंत्रता बनी रहेगी।

न्यायालय ने सोमनाथ बनाम महाराष्ट्र राज्य [2023 SCC OnLine SC 338] के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि सभी पुलिस बलों और गिरफ्तारी अथवा हिरासत का अधिकार रखने वाली एजेंसियों को संविधान और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होगा।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles