सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के किसी भी वैधानिक आधार के अभाव में भी संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक विवाह को तलाक की डिक्री द्वारा समाप्त कर दिया। न्यायालय ने ‘वैवाहिक संबंधों की अपूर्णीय टूटन’ (irretrievable breakdown of marriage) को प्रमुख आधार मानते हुए फैमिली कोर्ट और हाईकोर्ट के उन आदेशों को पलट दिया जिनमें पत्नी का तलाक का अनुरोध अस्वीकार करते हुए पति को वैवाहिक सहवास की पुनः स्थापना (restitution of conjugal rights) का आदेश दिया गया था।
पृष्ठभूमि:
विवाह अप्रैल 1999 में सम्पन्न हुआ था और जून 2001 में दंपत्ति की एक पुत्री का जन्म हुआ। पत्नी के अनुसार वे दोनों 2008 से अलग रह रहे हैं, जबकि पति ने यह अवधि 2012 से मानी। दोनों पक्षों ने यह स्वीकार किया कि वे पिछले 12 वर्षों से अधिक समय से अलग रह रहे हैं।
पत्नी द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की मांग वाली याचिका फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके विपरीत, पति की धारा 9 के अंतर्गत वैवाहिक सहवास की पुनः स्थापना की याचिका स्वीकार कर ली गई थी, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके विरुद्ध पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
पक्षकारों की दलीलें:
पत्नी के अधिवक्ता ने पुनः एकजुट होने की किसी भी संभावना से साफ इनकार करते हुए कहा कि यह विवाह “भावनात्मक और व्यावहारिक रूप से पूर्ण रूप से समाप्त हो चुका है”।
वहीं, पति के वकील ने विवाह विच्छेद का विरोध करते हुए कहा कि तलाक से उनकी पुत्री पर सामाजिक प्रभाव पड़ेगा और यह भी तर्क दिया कि पत्नी ने उनके सहयोग के बावजूद सरकारी नौकरी मिलने पर उन्हें छोड़ दिया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और दंपत्ति की बालिग पुत्री से वर्चुअल बातचीत भी की, जो वर्तमान में मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। न्यायालय ने यह उल्लेख किया कि पुत्री स्वतंत्र है और अपनी इच्छानुसार निर्णय लेने में सक्षम है।
कोर्ट ने कहा:
“हमने उसे इतना परिपक्व पाया कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सकती है… यह दर्ज करना पर्याप्त होगा कि हमें लगता है कि यह ऐसा मामला है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर विवाह को समाप्त किया जाना चाहिए…”
लंबे समय से चली आ रही जुदाई और पति-पुत्री के बीच संवादहीनता को देखते हुए कोर्ट ने कहा:
“वर्षों से चला आ रहा पृथक्करण और बार-बार विफल हुई सुलह की कोशिशें यह स्पष्ट दर्शाती हैं कि पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं है, विशेषकर जब दोनों की उम्र भी 50 वर्ष के आसपास है।”
जब पति ने फिर से बेटी के भविष्य का हवाला देकर तलाक का विरोध किया, तो कोर्ट ने कहा:
“यह तर्क हमें प्रभावित नहीं करता, विशेषकर इस तथ्य को देखते हुए कि उत्तरदाता-पति और पुत्री के बीच अलगाव की पूरी अवधि में कोई संपर्क नहीं रहा। हमारे अनुसार यह केवल मुकदमेबाजी को लंबा खींचने और अवश्यंभावी को टालने का प्रयास है।”
वैधानिक आधार के अभाव का प्रभाव नहीं:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक के उपलब्ध आधारों का न होना अनुच्छेद 142 के तहत राहत प्रदान करने में बाधक नहीं है।
कोर्ट ने कहा:
“यद्यपि उत्तरदाता-पति ने इस आधार पर तलाक देने का विरोध किया कि हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक के लिए उपलब्ध कोई आधार मौजूद नहीं है, फिर भी यह हमारे द्वारा अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्ति के प्रयोग में बाधा नहीं है…”
पीठ ने Shilpa Sailesh बनाम Varun Sreenivasan, 2023 SCC OnLine SC 544 के संविधान पीठ निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि विवाह संबंधों की अपूर्णीय टूटन अनुच्छेद 142 के अंतर्गत तलाक का एक वैध आधार है।
निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने विवाह को तलाक की डिक्री द्वारा समाप्त करते हुए पत्नी की अपील स्वीकार कर ली। चूंकि पत्नी ने कोई गुज़ारा भत्ता नहीं मांगा था, अतः इस संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा:
“इस प्रकार, हम पक्षकारों के बीच विवाह को तलाक की डिक्री द्वारा समाप्त करते हैं… हमारी यह आशा है कि यह अंतिम निर्णय परिवार के सभी सदस्यों को जीवन में आगे बढ़ने का अवसर देगा।”