सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक आर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) के कार्यकाल को बढ़ाया गया था, जबकि कानूनी रूप से उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि जब आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 29A(4) के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर अवार्ड (फैसला) पारित करने में विफलता के कारण आर्बिट्रेटर का मैंडेट (अधिकार) समाप्त हो जाता है, तो न्यायालय के पास धारा 29A(6) के तहत नए आर्बिट्रेटर को नियुक्त करने की शक्ति होती है।
जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने मोहन लाल फतेहपुरिया द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए पिछले आर्बिट्रेटर को हटाकर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस नजमी वजीरी को नया आर्बिट्रेटर नियुक्त किया है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या हाईकोर्ट द्वारा एक ऐसे सोल आर्बिट्रेटर (एकल मध्यस्थ) के कार्यकाल को बढ़ाना उचित था, जिसका वैधानिक कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका था। न्यायालय ने कहा कि जब आर्बिट्रेटर का मैंडेट समाप्त हो जाता है, तो उनका “बने रहना अस्वीकार्य” (Continuation is impermissible) है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद अपीलकर्ताओं (पति-पत्नी) और प्रतिवादी संख्या 2 से 4 के बीच 18 मई 1992 को निष्पादित एक साझेदारी विलेख (Partnership Deed) से उत्पन्न हुआ था। विवाद होने पर, दिल्ली हाईकोर्ट ने 13 मार्च 2020 को अधिवक्ता श्री अंजुम जावेद को सोल आर्बिट्रेटर नियुक्त किया था। आर्बिट्रेटर ने 20 मई 2020 को संदर्भ (Reference) ग्रहण किया।
निर्णय में नोट किए गए तथ्यों के अनुसार, धारा 23(4) के तहत प्लीडिंग्स 19 नवंबर 2020 तक पूरी हो गई थीं। कोविड-19 महामारी के कारण सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्देशों के तहत 15 मार्च 2020 से 28 फरवरी 2022 तक की अवधि को बाहर रखा गया था। इस प्रकार, अवार्ड पारित करने के लिए 12 महीने की वैधानिक अवधि 1 मार्च 2022 से शुरू हुई और 28 फरवरी 2023 को समाप्त हो गई।
सोल आर्बिट्रेटर इस अवधि के भीतर अवार्ड पारित करने में विफल रहे और उस समय पार्टियों द्वारा विस्तार के लिए कोई आवेदन दायर नहीं किया गया। नतीजतन, आर्बिट्रेटर ने 31 अगस्त 2023 को कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने आर्बिट्रेटर को बदलने के लिए धारा 29A(6) के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, 22 अप्रैल 2025 के आदेश में हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेटर को बदलने से इनकार कर दिया और उनके कार्यकाल को चार महीने के लिए बढ़ा दिया था।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि सोल आर्बिट्रेटर ने फीस और खर्चों के संबंध में नियुक्ति के प्रारंभिक आदेश का उल्लंघन किया था। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को यह समझना चाहिए था कि “अधिनियम की धारा 29A(6) के तहत आर्बिट्रेटर को बदलने की शक्ति व्यापक है और यह धारा 14 और 15 के आधारों तक सीमित नहीं है।”
इसके विपरीत, प्रतिवादियों ने दलील दी कि आर्बिट्रेटर को बदलने का कोई आधार नहीं बनता है। उन्होंने 28 जनवरी 2022 के हाईकोर्ट के एक पुराने आदेश का हवाला दिया, जिसमें फीस विवादों के आधार पर मैंडेट को समाप्त करने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। वैकल्पिक रूप से, प्रतिवादियों ने सुझाव दिया कि यदि न्यायालय आर्बिट्रेटर बदलता है, तो किसी पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त किया जाना चाहिए।
कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 29A की वैधानिक योजना का विश्लेषण किया, जिसका उद्देश्य मध्यस्थता कार्यवाही का समयबद्ध निपटान सुनिश्चित करना है।
मैंडेट की समाप्ति पर: पीठ ने पाया कि धारा 29A(1) के तहत अवार्ड 12 महीने के भीतर दिया जाना आवश्यक था। चूंकि यह अवधि 28 फरवरी 2023 को समाप्त हो गई थी और कोई विस्तार आवेदन नहीं था, कोर्ट ने नोट किया:
“सोल आर्बिट्रेटर, धारा 29A(4) में निहित मैंडेट के मद्देनजर ‘फंक्टस ऑफिसियो’ (functus officio – जिसका आधिकारिक अधिकार समाप्त हो गया हो) बन गए।”
तथ्यात्मक स्थिति का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:
“जब आर्बिट्रेटर का मैंडेट समाप्त हो जाता है, तो उनका बने रहना अस्वीकार्य है।”
बदलने की शक्ति पर: अदालत ने धारा 29A(6) के दायरे को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह “न्यायालय को आर्बिट्रेटर को बदलने का अधिकार देता है और इसके लिए बाध्य करता है।” पीठ ने प्रतिवादी द्वारा धारा 14 और 15 के तहत याचिकाओं के पहले खारिज होने की दलील को अस्वीकार कर दिया, यह देखते हुए कि उस तारीख (24 जनवरी 2022) पर मैंडेट समाप्त नहीं हुआ था।
न्यायालय ने कहा:
“विवाद के शीघ्र समाधान के अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए, जब मैंडेट अस्तित्व में नहीं रहता है, तो सोल आर्बिट्रेटर का प्रतिस्थापन (Substitution) आवश्यक है। वैधानिक योजना और निर्विवाद तथ्यात्मक स्थिति को देखते हुए, हम संतुष्ट हैं कि यह मामला धारा 29A(6) के तहत अधिकार क्षेत्र के प्रयोग की मांग करता है। हाईकोर्ट ने गलती की जब उसने सोल आर्बिट्रेटर का मैंडेट समाप्त होने के बाद भी विस्तार दे दिया।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 22 अप्रैल 2025 के आदेश को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने आदेश दिया:
“सोल आर्बिट्रेटर श्री अंजुम जावेद का मैंडेट कानून के संचालन से समाप्त माना जाता है। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री जस्टिस नजमी वजीरी को प्रतिस्थापित सोल आर्बिट्रेटर के रूप में नियुक्त किया जाता है।”
अदालत ने निर्देश दिया कि मध्यस्थता कार्यवाही “पहले से ही पहुंच चुके चरण से फिर से शुरू होगी और छह महीने के भीतर पूरी की जाएगी।”
केस डिटेल्स:
- केस टाइटल: मोहन लाल फतेहपुरिया बनाम मैसर्स भारत टेक्सटाइल्स और अन्य
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या ____ / 2025 (@ SLP (C) No. 13759 of 2025)
- कोरम: जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे
- साइटेशन: 2025 INSC 1409

