आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने 950 दिन की देरी से दायर अपील खारिज की; तथ्यों को दबाने पर लगाया ₹50,000 का जुर्माना

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी एवं न्यायमूर्ति महेश्वरा राव कुंचीएम की खंडपीठ ने धन वसूली के एक डिक्री के खिलाफ 950 दिन की देरी से दायर अपील को खारिज करते हुए विलंब को माफ करने से इंकार कर दिया। न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ताओं ने यह कहते हुए गलत तथ्यों का सहारा लिया कि उन्हें समन की सेवा नहीं हुई, जबकि वे ट्रायल कोर्ट में उपस्थित हुए थे, वकालतनामा दायर किया था और लिखित बयान दाखिल न करने पर उन्हें एकतरफा (ex parte) कर दिया गया था। कोर्ट ने तथ्यों को दबाने और गुमराह करने के प्रयास को गंभीर मानते हुए ₹50,000 का जुर्माना लगाया, जिसे आंध्र प्रदेश राज्य उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति में जमा करना होगा।

पृष्ठभूमि

प्रतिवादी एम.जी.आर. राइस इंडस्ट्रीज, पॉलमूरु ने वादीगण A.S. ट्रेडर्स और इसके प्रोप्राइटर A. सफर अली के खिलाफ वसूली का वाद (O.S. No. 11/2018) दायर किया। यह मामला वि. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, ईस्ट गोदावरी, राजमहेंद्रवरम के समक्ष लंबित था। 11 अप्रैल 2022 को अदालत ने वाद वादी के पक्ष में डिक्री पारित कर दी।

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अपीलकर्ताओं ने अपील वाद संख्या 223/2025 के साथ I.A. No. 1/2025 दायर कर 950 दिन की देरी माफ करने का अनुरोध किया। उनका कहना था कि उन्हें न तो कोई नोटिस/समन मिला और न ही उन्होंने किसी अधिवक्ता को नियुक्त किया। उनके अनुसार, उन्हें इस डिक्री की जानकारी केवल E.P. No. 145/2022 में संपत्ति अटैचमेंट की कार्यवाही से हुई।

अंतरिम आदेश और ट्रायल कोर्ट की रिपोर्ट

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26 जून 2025 को हाईकोर्ट ने नोट किया कि ट्रायल कोर्ट के निर्णय के पैरा 4 में स्पष्ट है—”समन प्राप्त होने के बावजूद प्रतिवादीगण… उपस्थित नहीं हुए और एकतरफा कर दिए गए।” इस पर कोर्ट ने समन की सेवा के संबंध में ट्रायल कोर्ट से रिपोर्ट तलब की।

30 जून 2025 की रिपोर्ट में बताया गया कि यद्यपि आरंभिक समन डाक से “पता छोड़ गए” लिखकर लौट आए थे, किंतु 26 सितंबर 2018 को प्रतिवादीगण के अधिवक्ताओं ने वकालतनामा दायर किया। 16 अप्रैल 2019 तक लिखित बयान दाखिल करने का समय दिया गया, परंतु प्रतिवादीगण अनुपस्थित रहे और उसी दिन उन्हें एकतरफा कर दिया गया।

न्यायालय का विश्लेषण

पीठ ने कहा कि गैर-सेवा का दावा “रिकॉर्ड के विपरीत” है। कॉमर्शियल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति को भी अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि विशेष न्यायालय, विशाखापट्टनम ने पहले ही फाइल यह कहते हुए लौटाई थी कि पक्षकारों के बीच हुआ लेन-देन कॉमर्शियल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

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कोर्ट ने पाया कि विलंब माफ करने का कोई उचित कारण नहीं है, इसलिए I.A. No. 1/2025 को खारिज किया गया और अपील समय-सीमा से बाहर होने के कारण खारिज कर दी गई। साथ ही, कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ताओं ने तथ्यों को दबाते हुए झूठा हलफनामा दायर किया और न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया।

तथ्यों के दमन पर टिप्पणियां

कोर्ट ने Oswal Fats & Oils Ltd. v. Additional Commissioner (2010) 4 SCC 728, Kishore Samrite v. State of U.P. (2013) 2 SCC 398, तथा Sciemed Overseas Inc. v. Boc India Ltd. (2016) 3 SCC 70 का हवाला देते हुए दोहराया कि न्याय से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का ईमानदारी से खुलासा करना प्रत्येक वादकारी का कर्तव्य है और तथ्यों को छिपाना राहत से वंचित करने का आधार है।

दूसरे अपीलकर्ता द्वारा दिया गया यह स्पष्टीकरण कि उनके बिना जानकारी के वकालतनामा दायर हुआ, कोर्ट ने “बाद में गढ़ा गया” (afterthought) मानकर अस्वीकार कर दिया।

अधिवक्ताओं के कर्तव्य पर टिप्पणियां

कोर्ट ने अपीलकर्ताओं की अधिवक्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, परंतु कहा कि उन्हें निर्देशों की सत्यता की जांच में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी। कोर्ट ने J.S. Jadhav v. Mustafa Haji Mohamed Yusuf (1993) 2 SCC 562, M. Veerabhadra Rao v. Tek Chand (1984 Supp SCC 571) और K. Anjinappa v. K.C. Krishna Reddy (2022) 17 SCC 625 का हवाला देकर अधिवक्ताओं से अपेक्षित उच्च नैतिक मानकों और ईमानदारी पर जोर दिया।

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निर्णय

  • I.A. No. 1/2025: अस्वीकार; 950 दिन की देरी माफ नहीं की गई।
  • अपील: समय-सीमा से बाहर होने के कारण खारिज।
  • जुर्माना: अपीलकर्ताओं पर ₹50,000 का जुर्माना, जो एक माह के भीतर आंध्र प्रदेश राज्य उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति में जमा करना होगा।
  • अन्य कार्यवाही: लागत की वसूली के अलावा आगे कोई कार्रवाई आवश्यक नहीं।

आदेश की प्रति ट्रायल कोर्ट और आंध्र प्रदेश राज्य उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति को भेजने का निर्देश दिया गया।

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