अग्रिम जमानत | क्या सीधे हाईकोर्ट जाया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने मुद्दा तीन-जजों की बेंच को सौंपा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक प्रश्न को विचार के लिए तीन-जजों की एक बड़ी बेंच को भेज दिया है। प्रश्न यह है कि क्या अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) के लिए किसी याचिकाकर्ता को पहले अनिवार्य रूप से सेशंस कोर्ट (सत्र न्यायालय) का रुख करना होगा, या उसके पास सीधे हाईकोर्ट जाने का “विकल्प” है।

यह मामला जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच के सामने था। बेंच ने कहा, “इस मामले को तीन-जजों की बेंच द्वारा सुना जाना आवश्यक है।” बेंच ने निर्देश दिया कि जब भी बड़ी बेंच का गठन होगा, इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।

इस मामले में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा को पहले ही न्याय मित्र (Amicus Curiae) नियुक्त किया जा चुका है।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई एक टिप्पणी से शुरू हुआ था। कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट की एक “नियमित प्रथा” पर संज्ञान लिया था, जहाँ अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सीधे सुनवाई की जा रही थी, जबकि याचिकाकर्ता पहले सेशंस कोर्ट नहीं जा रहे थे।

READ ALSO  समझौता होने पर SC/ST एक्ट का केस रद्द, लेकिन पीड़ित को लौटाना होगा सरकारी मुआवजा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

यह मुद्दा तब उठा जब बेंच दो व्यक्तियों की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने केरल हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत अर्जी खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इन याचिकाकर्ताओं ने राहत के लिए सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

अदालत की पिछली टिप्पणियाँ

8 सितंबर की सुनवाई के दौरान, बेंच ने इस प्रथा पर स्पष्ट रूप से सवाल उठाया था। बेंच ने पूछा था, “एक मुद्दा जो हमें परेशान कर रहा है, वह यह है कि केरल हाईकोर्ट में ऐसा लगता है कि हाईकोर्ट सीधे अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है… ऐसा क्यों है?”

अदालत ने इसकी तुलना अन्य राज्यों की प्रक्रिया से करते हुए कहा था, “ऐसा किसी अन्य राज्य में नहीं होता है। हमने देखा है कि सिर्फ केरल हाईकोर्ट में ही नियमित रूप से याचिकाएँ (अग्रिम जमानत के लिए) सीधे स्वीकार की जा रही हैं।”

READ ALSO  MACT के पीठासीन अधिकारी से भद्दे शब्दों का प्रयोग करने वाले वकील के खिलाफ इलाहाबाद HC ने जारी किया अवमानना नोटिस

बेंच ने इस बात पर जोर दिया था कि पिछली दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 (जिसकी धारा 482 इससे संबंधित है) में एक पदानुक्रम (hierarchy) प्रदान किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह चिंता भी व्यक्त की थी कि जब हाईकोर्ट सीधे ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई करता है, तो “संभव है कि उचित तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं आ पाते, जो अन्यथा सेशंस कोर्ट के सामने आ सकते थे।”

बड़ी बेंच के लिए सवाल

एक निश्चित व्यवस्था की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, बेंच ने उस कानूनी सवाल को तय किया था जिसे वह सुलझाना चाहती है: “हम इस पहलू पर विचार करने और इस मुद्दे को तय करने के इच्छुक हैं कि क्या हाईकोर्ट जाने का विकल्प पार्टी की पसंद पर होगा या यह अनिवार्य होना चाहिए कि आरोपी पहले सेशंस कोर्ट जाए।”

READ ALSO  रिक्त पद के अभाव में अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने का कोई निहित अधिकार नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

अपने सितंबर के आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने इस विशिष्ट प्रक्रियात्मक पहलू पर केरल हाईकोर्ट को उसके रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से नोटिस जारी किया था। अब, इस सवाल के महत्व को देखते हुए, दो-जजों की बेंच ने बुधवार को इसे एक आधिकारिक निर्णय के लिए तीन-जजों की बेंच को संदर्भित कर दिया है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles