इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति रद्द करने के आदेश को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी महिला की जेठानी अलग घर में रहती है, तो उसे सरकारी नियम के तहत ‘एक ही परिवार’ की परिभाषा में नहीं माना जा सकता। यह नियम एक ही केंद्र पर एक ही परिवार की दो महिलाओं को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका के रूप में नियुक्त करने पर रोक लगाता है। कोर्ट ने यह भी पाया कि नियुक्ति रद्द करने का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया था।
यह फैसला न्यायमूर्ति अजीत कुमार की एकल पीठ ने कुमारी सोनम द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनाया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से बहाल करने और वेतन के बकाए सहित सभी परिणामी लाभों का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता कुमारी सोनम को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्त किया गया था। बाद में, जिला कार्यक्रम अधिकारी, बरेली ने 13 जून, 2025 के एक आदेश द्वारा उनकी नियुक्ति रद्द कर दी। रद्दीकरण का मुख्य कारण यह बताया गया कि याचिकाकर्ता की जेठानी, श्रीमती रामवती, उसी ब्लॉक में आंगनबाड़ी सहायिका के पद पर पहले से कार्यरत थीं। इसे 21 मई, 2023 के एक सरकारी आदेश का उल्लंघन माना गया, जो एक ही केंद्र पर एक ही परिवार की दो महिलाओं की नियुक्ति पर रोक लगाता है।

इस आदेश से व्यथित होकर, कुमारी सोनम ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका दायर कर रद्दीकरण आदेश को रद्द करने की मांग की।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने मुख्य रूप से दो आधारों पर तर्क दिया। पहला, यह कि विवादित आदेश याचिकाकर्ता को कोई नोटिस दिए बिना या सुनवाई का अवसर प्रदान किए बिना पारित किया गया था, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
दूसरा, सरकारी आदेश की कानूनी व्याख्या पर, वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता और उनकी जेठानी प्रासंगिक खंड के तहत निषिद्ध “एक ही परिवार” से संबंधित नहीं हैं। याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को साबित करने के लिए परिवार रजिस्टर का साक्ष्य प्रस्तुत किया, जिससे पता चलता है कि उनके पति मकान नंबर 126 में रहते हैं, जबकि उनकी जेठानी एक अलग मकान नंबर 107 में रहती हैं। वकील ने यह भी तर्क दिया कि अगर दोनों भाई एक साथ एक ही रसोई और घर में रह रहे हों, तभी उन्हें एक परिवार माना जा सकता है।
उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से उपस्थित स्थायी वकील, रद्दीकरण आदेश का बचाव करने का प्रयास तो किया, लेकिन वे इस तथ्य पर विवाद नहीं कर सके कि आदेश याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना पारित किया गया था।
न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष
न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिकाकर्ता के तर्कों में दम पाया। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि विवादित आदेश प्रक्रियात्मक और कानूनी, दोनों आधारों पर अस्थिर था।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक जेठानी को उक्त नियम के प्रयोजनों के लिए याचिकाकर्ता के परिवार का सदस्य स्वतः नहीं माना जा सकता। फैसले में उस शर्त को स्पष्ट किया गया जिसके तहत उन्हें एक ही परिवार का हिस्सा माना जा सकता है, यह कहते हुए कि, “बहू (जेठानी) को परिवार का सदस्य तभी माना जा सकता है जब दोनों भाई एक साथ एक ही रसोई और घर में रह रहे हों।”
चूंकि याचिकाकर्ता ने अपनी जेठानी से अलग घर में रहने का सबूत पेश किया था,¯ इसलिए कोर्ट ने माना कि सरकारी आदेश के तहत लगाई गई रोक उन पर लागू नहीं होती। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निष्कर्ष निकाला, “यह नहीं कहा जा सकता है कि जेठानी और याचिकाकर्ता दोनों एक ही परिवार की महिलाएं थीं, और इसलिए, विवादित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन और मामले के गुण-दोष, दोनों आधारों पर अस्थिर है।”
न्यायालय का निर्णय
रिट याचिका को स्वीकार करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला कार्यक्रम अधिकारी, बरेली द्वारा पारित 13 जून, 2025 के आदेश को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में उसके कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए बहाल करें और उसे महीने-दर-महीने वेतन का भुगतान करें। फैसले ने याचिकाकर्ता को विवादित आदेश के कारण अवैध रूप से काम से वंचित रहने की अवधि के लिए वेतन के बकाए के भुगतान सहित सभी परिणामी लाभों का भी हकदार बनाया।