एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जिसमें वैधानिक उपायों के प्रयोग के महत्व को रेखांकित किया गया, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने दो सिविल पुनरीक्षण याचिकाओं (सीआरपी संख्या 2937/2024 और 569/2020) को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति चल्ला गुणरंजन की पीठ द्वारा दिए गए निर्णय में भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग में वैकल्पिक उपायों और न्यायिक संयम के सिद्धांत पर जोर दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता बोड्डू प्रसाद राव ने पंजाब नेशनल बैंक द्वारा दायर ओ.ए. संख्या 98/2014 में ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी), विशाखापत्तनम द्वारा पारित आदेशों को चुनौती दी। न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ता द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहने के कारण 18 अगस्त, 2017 को मूल आवेदन (ओ.ए.) को स्वीकार कर लिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने 2017 में एम.ए. संख्या 106 दायर की, जिसमें ओ.ए. आदेश को रद्द करने के लिए बहाली आवेदन दाखिल करने में दस दिन की देरी को माफ करने की मांग की गई। इस आवेदन को 10 जनवरी, 2020 को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि ओ.ए. का फैसला गुण-दोष के आधार पर किया गया था, न कि एकपक्षीय आधार पर।
याचिकाकर्ता ने बहाली आवेदन को खारिज करने और देरी को माफ करने को चुनौती देते हुए वर्तमान सिविल संशोधन याचिकाओं के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कानूनी मुद्दे और अवलोकन
1. वैकल्पिक उपाय: प्राथमिक मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता ऋण वसूली और दिवालियापन अधिनियम, 1993 की धारा 20 के तहत अपील के वैधानिक उपाय को समाप्त किए बिना अनुच्छेद 227 के तहत सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना कि धारा 20 डीआरटी द्वारा पारित किसी भी आदेश के खिलाफ ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण (डीआरएटी) में अपील करने की अनुमति देता है। “किसी भी आदेश” में देरी के लिए माफ़ी या एकपक्षीय आदेशों को रद्द करने के लिए आवेदनों को खारिज करने वाले आदेश शामिल हैं। पीठ ने पंजाब नेशनल बैंक बनाम ओ.सी. कृष्णन (एआईआर 2001 एससी 3208) का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने से पहले वैकल्पिक उपायों का लाभ उठाया जाना चाहिए।
2. आदेश की एकपक्षीय प्रकृति: याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि डीआरटी का 18 अगस्त, 2017 का आदेश एकपक्षीय था। हालांकि, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह तर्क अप्रासंगिक था क्योंकि याचिकाकर्ता के पास आदेश को चुनौती देने के लिए अपील और समीक्षा सहित कई वैधानिक उपाय थे।
3. न्यायिक संयम: अदालत ने न्यायिक संयम पर जोर देते हुए कहा, “न्यायिक विवेक की मांग है कि न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से परहेज करे जब कोई वैधानिक उपाय उपलब्ध हो।” यह सत्यवती टंडन बनाम भारत संघ और अन्य मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के रुख के अनुरूप है, जो वैधानिक तंत्र को दरकिनार करने की प्रथा की निंदा करता है।
निर्णय
हाईकोर्ट ने सिविल संशोधन याचिकाओं को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता प्रत्यक्ष हस्तक्षेप को उचित ठहराने वाली असाधारण परिस्थितियों को प्रदर्शित करने में विफल रहा। इसने नोट किया, “याचिकाकर्ता के पास एक वैधानिक वैकल्पिक उपाय था, और स्थापित सिद्धांतों से विचलन को वारंट करने के लिए कोई असाधारण आधार प्रस्तुत नहीं किया गया था।”
प्रतिनिधित्व
– याचिकाकर्ता के वकील: श्री पेंजुरी वेणुगोपाल
– प्रतिवादी (पंजाब नेशनल बैंक) के वकील: श्री श्रवण कुमार मन्नवा