‘मद्रास फिल्टर कॉफी’ ब्रांड विवाद में हाईकोर्ट ने अंतरिम निषेधाज्ञा को किया रद्द

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहारी और न्यायमूर्ति चल्ला गुणरंजन की खंडपीठ ने “मद्रास फिल्टर कॉफी” नाम के ट्रेडमार्क विवाद में वादी के पक्ष में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित अस्थायी निषेधाज्ञा के आदेश को रद्द कर दिया है। उच्च न्यायालय ने माना कि वादी 1978-79 से पहले ब्रांड नाम के पूर्व उपयोग को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश करने में विफल रहे।

पृष्ठभूमि

वादीगण ने मूल वाद (O.S. No. 68/2023) में दावा किया कि ‘Madras Filter Coffee’ ब्रांड का उपयोग उनके परिवार द्वारा 1978-79 से किया जा रहा है और इसी नाम से उनकी व्यवसायिक पहचान है। उन्होंने प्रतिवादियों को इस नाम या मिलते-जुलते नाम का उपयोग करने से रोकने के लिए स्थायी एवं अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग की थी।

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VII अपर जिला न्यायाधीश, विजयवाड़ा द्वारा I.A. Nos. 536 एवं 537/2023 में अंतरिम निषेधाज्ञा दी गई थी। इसी आदेश को अपीलकर्ता ने चुनौती दी।

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ट्रायल कोर्ट का आदेश

ट्रायल कोर्ट ने वादियों के पक्ष में माना कि उन्होंने प्रथमदृष्टया मामला स्थापित किया है और यदि रोक नहीं दी गई तो उन्हें अपूरणीय क्षति हो सकती है। इस आधार पर निषेधाज्ञा दी गई।

अपीलकर्ता की दलीलें

अपीलकर्ता ने प्रस्तुत किया कि—

  • वादियों द्वारा व्यवसाय के दीर्घकालिक उपयोग का कोई वैधानिक या स्वतंत्र दस्तावेज (जैसे टैक्स रिटर्न, व्यापार लाइसेंस आदि) प्रस्तुत नहीं किया गया।
  • 19.01.2023 और 20.01.2023 की साझेदारी/सेवानिवृत्ति डीड में किया गया दावा हालिया था और स्वयं के हित में था।
  • वादीगण ने किसी पंजीकृत ट्रेडमार्क के बिना केवल कथनों के आधार पर निषेधाज्ञा प्राप्त की।
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कोर्ट की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी ने निर्णय देते हुए कहा:

“केवल हालिया साझेदारी दस्तावेज़ों में 1978-79 से व्यवसाय करने की बात लिखी गई है। इस कथन को ठोस साक्ष्य के रूप में नहीं लिया जा सकता, विशेषकर तब जब प्रतिवादी ने स्पष्ट इनकार किया हो।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब ट्रेडमार्क पंजीकृत नहीं है, तो “prior user” के प्रमाण हेतु स्वतंत्र, स्पष्ट एवं विश्वसनीय साक्ष्य आवश्यक होता है।

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निर्णय

न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी एवं न्यायमूर्ति चल्ला गुना रंजन की खंडपीठ ने दोनों अपीलें स्वीकार करते हुए 21.10.2022 के ट्रायल कोर्ट के अंतरिम निषेधाज्ञा आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि वादी प्रथमदृष्टया मामला सिद्ध नहीं कर सके और यह मुद्दा अब परीक्षण के दौरान ही तय किया जाएगा।

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