सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन ने सोमवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की कुलपति प्रोफेसर नैमा खातून की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया। प्रोफेसर खातून एएमयू की पहली महिला कुलपति हैं।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ के समक्ष यह मामला आया था। यह अपील मुजफ्फर उरुज रब्बानी ने दायर की है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसने प्रोफेसर खातून की नियुक्ति को सही ठहराया था।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रन ने अपने पूर्व कार्यकाल का हवाला देते हुए मामले की सुनवाई से अलग होने की पेशकश की। उन्होंने कहा, “मैं सीएनएलयू का चांसलर था, जब मैंने फैजान मुस्तफा का चयन किया था… इसलिए मैं इस मामले की सुनवाई से अलग हो सकता हूँ।”

हालाँकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें न्यायमूर्ति चंद्रन की निष्पक्षता पर पूरा भरोसा है और उनके अलग होने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि इस मामले को अब दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने चयन प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “यदि कुलपतियों की नियुक्ति इसी तरह होगी, तो भविष्य में क्या होगा, इसकी कल्पना से ही डर लगता है।” उन्होंने तर्क दिया कि प्रोफेसर खातून को केवल छह वोट ही मिलते यदि दो विवादित वोटों— जिनमें एक तत्कालीन कुलपति का भी था— को हटा दिया जाता।
वहीं, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने इसका विरोध करते हुए नियुक्ति को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा, “यह प्रक्रिया आंशिक चयन और आंशिक चुनाव है। हाईकोर्ट ने भले ही चुनाव संबंधी हमारी दलील से सहमति नहीं जताई, लेकिन नियुक्ति को सही ठहराया है।”
सॉलिसिटर जनरल ने आपत्तियों को “सिर्फ आशंकित पक्षपात” पर आधारित बताया। हालाँकि, मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि निष्पक्षता की दृष्टि से कुलपति को मतदान से दूर रहना चाहिए था। उन्होंने कहा, “यहाँ तक कि कॉलेजियम के निर्णयों में भी यदि ऐसी स्थिति आती है तो हम स्वयं को अलग कर लेते हैं।”
अब यह याचिका सुप्रीम कोर्ट की दूसरी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखी जाएगी।