वैवाहिक विवादों में पत्नी द्वारा लगाए गए नपुंसकता के आरोप मानहानि नहीं हैं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी द्वारा पति पर नपुंसकता जैसे आरोप वैवाहिक विवादों के दौरान न्यायिक कार्यवाहियों में लगाए जाते हैं और वे सद्भावपूर्वक अपने हितों की रक्षा के लिए किए गए हैं, तो वे भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अंतर्गत मानहानि नहीं माने जाएंगे। न्यायालय ने पति द्वारा अपनी पत्नी और उसके पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ दर्ज की गई मानहानि की शिकायत को खारिज कर दिया।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

विवाद एक शिकायत से उत्पन्न हुआ जिसमें पति ने आरोप लगाया कि पत्नी और उसके परिवार ने उसके विरुद्ध नपुंसकता संबंधी अपमानजनक आरोप विभिन्न न्यायिक कार्यवाहियों—जैसे तलाक याचिका, भरण-पोषण आवेदन, एफआईआर और सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका—के दौरान लगाए थे।

11वें अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, कुर्ला ने 15 अप्रैल 2023 को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 203 के तहत शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि:

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“प्रथम दृष्टया आरोपियों के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने का कोई आधार नहीं बनता… आरोपित आरोप वैवाहिक विवादों जैसे तलाक आदि कार्यवाहियों में लगाए गए हैं। स्पष्ट है कि तलाक का एक आधार नपुंसकता है।”

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इसके बाद शिकायतकर्ता ने सत्र न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसमें मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करते हुए 3 अप्रैल 2024 को मामले को पुनः जांच के लिए मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया गया। इस आदेश को अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं की ओर से:

  • पुनरीक्षण न्यायालय ने जिस आधार पर मामला वापस भेजा (गवाहों की परीक्षा का अवसर न मिलना), वह शिकायतकर्ता द्वारा कभी उठाया ही नहीं गया था।
  • मूल मजिस्ट्रेट का आदेश उचित था क्योंकि आरोप न्यायिक और पुलिस कार्यवाहियों में लगाए गए थे और वे धारा 499 की अपवाद श्रेणी में आते हैं।
  • उद्धृत निर्णय:
    • Aroon Purie v. State of NCT of Delhi (2022 SCC OnLine SC 1491)
    • Iveco Magirus v. Nirmal Kishore Bhartiya (2024) 2 SCC 86
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प्रतिकारी की ओर से:

  • मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता को पर्याप्त अवसर नहीं दिया।
  • आरोप दुर्भावना से लगाए गए थे और सार्वजनिक न्यायिक रिकार्ड का हिस्सा होने के कारण स्वयं में मानहानिकारक हैं।
  • निर्णय उद्धृत: X बनाम Y [2018 DGLaw (Bom) 545]

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति एस. एम. मोडक ने कहा कि सत्र न्यायालय ने मजिस्ट्रेट के कारणों पर विचार किए बिना मामला पुनः भेजा, जो कि अनुचित था। उन्होंने कहा:

“जब मजिस्ट्रेट ने कहा कि ये आरोप तलाक की कार्यवाही में लगाए गए हैं, तो उनका आशय यह था कि ये आरोप मानहानि के अपवाद के अंतर्गत आते हैं।”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि:

  • शिकायतकर्ता द्वारा गवाहों की परीक्षा की कोई मांग रिकॉर्ड पर नहीं थी।
  • सत्र न्यायालय का तर्क शिकायत में कहीं नहीं था और इसलिए उसका आधार त्रुटिपूर्ण था।

न्यायालय ने माना कि नपुंसकता के आरोप चार कार्यवाहियों में लगाए गए थे: एक एफआईआर, तलाक याचिका, भरण-पोषण आवेदन और सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका। न्यायालय ने कहा:

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“जब पति-पत्नी के बीच का विवाद वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न हुआ हो, तो पत्नी अपने हितों की रक्षा हेतु ऐसे आरोप लगाने के लिए वैध रूप से उचित ठहराई जा सकती है… ये आरोप धारा 499 की नवमीं अपवाद श्रेणी में आते हैं।”

अंतिम आदेश

  • रिट याचिका स्वीकार की गई।
  • 3 अप्रैल 2024 को सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश रद्द किया गया।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 500, 506 और 34 के तहत दर्ज शिकायत खारिज की गई।

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