इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह फैसला सुनाया है कि यदि कोई करदाता टैक्स कटौती (TDS) का वैध प्रमाण पत्र (फॉर्म 16A) प्रस्तुत करता है, तो आयकर विभाग केवल इस आधार पर TDS क्रेडिट या रिफंड से इनकार नहीं कर सकता कि वह राशि उसके फॉर्म 26AS में दिखाई नहीं दे रही है।
न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने यू.पी. राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका का निस्तारण करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने संबंधित निर्धारण अधिकारी को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजी सबूतों के आधार पर उसके रिफंड के दावे पर कार्रवाई करें।
क्या है पूरा मामला?

याचिकाकर्ता, यू.पी. राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड, जो एक सहकारी समिति है, ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। समिति ने आयकर विभाग के 5 दिसंबर, 2017 के उस नोटिस को चुनौती दी थी, जो आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 226(3) के तहत जारी किया गया था। इस नोटिस के जरिए विभाग ने याचिकाकर्ता के बैंक को उसके खाते से 3.50 करोड़ रुपये की बकाया मांग का भुगतान करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की कि उक्त नोटिस के आधार पर पहले से काटे जा चुके 1.50 करोड़ रुपये वापस किए जाएं।
यह पूरा विवाद निर्धारण वर्ष 2009-10 से 2012-13 और 2015-16 के लिए काटे गए TDS का क्रेडिट देने से विभाग के इनकार के कारण उत्पन्न हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप 23 अक्टूबर, 2017 को याचिकाकर्ता के खिलाफ मांग नोटिस जारी किया गया था।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री डी.डी. चोपड़ा ने तर्क दिया कि सहकारी समिति होने के नाते याचिकाकर्ता आयकर अधिनियम की धारा 80P के तहत कर से मुक्त है, और इसलिए वह पूरी TDS राशि के रिफंड का हकदार है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि आवश्यक TDS प्रमाण पत्र (फॉर्म 16A) के साथ रिफंड के लिए कई आवेदन देने के बावजूद, विभाग ने दावे को संसाधित करने से इनकार कर दिया। इनकार का एकमात्र कारण यह था कि TDS की राशि याचिकाकर्ता के फॉर्म 26AS में नहीं दिख रही थी।
कोर्ट का विश्लेषण और दिए गए उदाहरण
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस कानूनी मुद्दे पर स्थिति “स्पष्ट और सुस्थापित” है। बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले और स्वयं इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्णय पर भरोसा किया।
कोर्ट ने ‘कोर्ट ऑन इट्स मोशन बनाम आयकर आयुक्त (2012)’ मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का विस्तार से उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि कटौतीकर्ता (Deductor) द्वारा TDS विवरण सही ढंग से अपलोड न करने की गलती का खामियाजा करदाता (Assessee) को नहीं भुगतना पड़ सकता।
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के निर्देश संख्या 05/2013 का भी संज्ञान लिया, जो उपरोक्त फैसले के आलोक में जारी किया गया था। यह सर्कुलर स्पष्ट रूप से निर्धारण अधिकारियों को निर्देश देता है कि वे करदाता द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्रों के आधार पर TDS दावों का सत्यापन करें और यदि सरकारी खाते में भुगतान की पुष्टि हो जाती है तो क्रेडिट प्रदान करें।
अपने अंतिम विश्लेषण में, कोर्ट ने स्पष्ट रूप से अपनी स्थिति व्यक्त की:
“उपरोक्त निर्णयों और परिपत्र के आलोक में, हमारा विचार है कि एक करदाता को एक निर्धारण अधिकारी की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता जो वास्तविक रिफंड के भुगतान में देरी करता है। इसके अलावा, जब तक करदाता स्रोत पर कर कटौती को साबित करने वाले दस्तावेज प्रदान करने में सक्षम है, तब तक इसे निर्धारण अधिकारी द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए, जो यह जोर नहीं दे सकता कि राशि फॉर्म 26AS के आंकड़ों से मेल खानी चाहिए। फॉर्म 16A के प्रमाण के माध्यम से करदाता द्वारा प्रदान की गई राशियों को सत्यापित करना निर्धारण अधिकारी की जिम्मेदारी है।”
कोर्ट का अंतिम निर्णय
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि याचिकाकर्ता आयकर प्राधिकरण द्वारा फॉर्म 16A प्रमाण पत्र स्वीकार किए जाने पर रिफंड प्राप्त करने का हकदार है, हाईकोर्ट ने मामले को हल करने के लिए विशिष्ट निर्देश जारी किए।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 28 अक्टूबर, 2025 को संबंधित प्राधिकरण (प्रतिवादी संख्या 3) के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया। प्राधिकरण को यह भी आदेश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेजों की जांच करे और उस तारीख से चार सप्ताह के भीतर कानून के अनुसार आवश्यक आदेश पारित करे।
इन निर्देशों के साथ रिट याचिका का निस्तारण कर दिया गया।