सर्विस बुक गुम होने पर विभाग कर्मचारी को नियमितीकरण और पेंशन से वंचित नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि विभाग किसी कर्मचारी के सेवा रिकॉर्ड को बनाए रखने और सुरक्षित रखने में विफल रहता है, तो इस आधार पर कर्मचारी को नियमितीकरण और पेंशन लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने कहा कि सेवा रिकॉर्ड के रखरखाव की जिम्मेदारी विभाग की है, और वह अपनी गलती का फायदा उठाकर किसी कर्मचारी को दंडित नहीं कर सकता।

यह फैसला सत्य प्रकाश श्रीवास्तव द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर आया है, जिन्हें अधिकारियों द्वारा उनकी सर्विस बुक गुम हो जाने के बाद समीक्षा अधिकारी के रूप में नियमितीकरण और सेवानिवृत्ति लाभ से वंचित कर दिया गया था। न्यायालय ने उनके दावों को खारिज करने वाले आदेशों को रद्द कर दिया और राज्य को 2000 से पूर्वव्यापी प्रभाव से उनकी सेवा को नियमित करने और उन्हें सभी पेंशन लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

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याचिकाकर्ता सत्य प्रकाश श्रीवास्तव को शुरू में 1979 में एक टाइपिस्ट के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उन्हें 23 जुलाई, 1990 को सहायक समीक्षा अधिकारी (एआरओ) के रूप में पदोन्नत किया गया और 10 सितंबर, 1991 को तदर्थ आधार पर समीक्षा अधिकारी (आरओ) के पद पर पदोन्नति दी गई।

तदर्थ समीक्षा अधिकारियों के नियमितीकरण पर विचार करने के लिए 23-24 नवंबर, 2000 को एक चयन समिति की बैठक बुलाई गई थी। हालाँकि, इस बैठक में याचिकाकर्ता के मामले पर विचार नहीं किया गया, जबकि उनके कई कनिष्ठों को नियमित कर दिया गया। इसका मुख्य कारण उनकी सर्विस बुक का उपलब्ध न होना बताया गया, जो विभागीय अधिकारियों द्वारा गुम कर दी गई थी। नतीजतन, 9 सितंबर, 1999 से 6 दिसंबर, 2004 तक की उनकी सेवा अवधि पर विचार नहीं किया गया, जिसके कारण अंततः आवश्यक अर्हकारी सेवा पूरी न करने के आधार पर उनकी पेंशन से इनकार कर दिया गया।

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याचिकाकर्ता ने 29 जुलाई, 2014 और 14 अगस्त, 2020 के उन आदेशों को चुनौती दी, जिन्होंने इन लाभों के लिए उनके अभ्यावेदन को खारिज कर दिया था।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से न्याय मित्र (Amicus Curiae) शेख वली उज़ ज़मान ने तर्क दिया कि उन्हें नियमितीकरण से गलत तरीके से वंचित किया गया क्योंकि उनकी सर्विस बुक विभाग द्वारा गुम कर दी गई थी। यह दलील दी गई कि प्रतिवादी अपनी ही गलती का फायदा उठा रहे हैं।

दूसरी ओर, राज्य ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को नवंबर 2000 में नियमितीकरण के लिए इसलिए नहीं माना गया क्योंकि वह “चयन समिति द्वारा उपयुक्त नहीं पाए गए थे।” राज्य के वकील ने यह भी दावा किया कि याचिकाकर्ता से उनके सेवा रिकॉर्ड के लिए संपर्क करने के प्रयास किए गए थे, लेकिन उन्होंने विवरण प्रदान नहीं किया। इसके अलावा, राज्य ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 2012 में गबन के लिए दर्ज एक आपराधिक मामले और संबंधित विभागीय जांच का हवाला दिया, जिसमें पदावनति का दंड प्रस्तावित था, लेकिन 31 दिसंबर, 2019 को उनके सेवानिवृत्त हो जाने के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका।

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न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने रिकॉर्ड की जांच करने और दलीलों को सुनने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता का नियमितीकरण के लिए विचार किए जाने का अधिकार नवंबर 2000 में चयन समिति की बैठकों के समय ही उत्पन्न हो गया था। न्यायालय ने कहा कि उस समय उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित नहीं थी।

फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि राज्य के जवाबी हलफनामे में याचिकाकर्ता की अनुपयुक्तता का एकमात्र आधार उनके सेवा रिकॉर्ड का उपलब्ध न होना था। न्यायालय ने इस औचित्य को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए कहा, “यह एक स्थापित सिद्धांत है कि किसी कर्मचारी के सेवा रिकॉर्ड को सुरक्षित रखने और रखरखाव की जिम्मेदारी स्वयं विभाग की है, कर्मचारी की नहीं। यदि ऐसे सेवा रिकॉर्ड गायब या गुम हो जाते हैं, तो कर्मचारी के सेवा विवरण को पूरा करने का दायित्व स्वयं विभाग पर है।”

न्यायालय ने आगे कहा, “ऐसे किसी भी सेवा रिकॉर्ड के अभाव में, विभाग अपनी इस चूक का लाभ नहीं उठा सकता और न ही इसका बोझ कर्मचारी पर डाला जा सकता है ताकि उसे उन लाभों से वंचित किया जा सके जिनका वह उचित रूप से हकदार है।”

फैसला

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विभाग की कार्रवाइयों को अस्वीकार्य पाते हुए, हाईकोर्ट ने याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने 29 जुलाई, 2020, 14 अगस्त, 2020 और 25 जुलाई, 2022 के उन आदेशों को रद्द करने के लिए एक उत्प्रेषण रिट (Writ of Certiorari) जारी की, जिनके तहत याचिकाकर्ता को लाभ से वंचित किया गया था।

इसके अलावा, न्यायालय ने निम्नलिखित आदेशों के साथ एक परमादेश रिट (Writ of Mandamus) जारी की:

  1. सक्षम प्राधिकारी याचिकाकर्ता को उस तारीख से सेवा में नियमित मानें, जिस तारीख से 23-24 नवंबर, 2000 की चयन समिति की बैठक के बाद उनके कनिष्ठ व्यक्तियों को नियमित किया गया था।
  2. प्रतिवादी याचिकाकर्ता को 1979 से 2019 तक की उनकी संपूर्ण सेवा अवधि को पेंशन लाभ के लिए अर्हकारी सेवा मानते हुए पेंशन और अन्य पेंशन लाभ प्रदान करें।

सक्षम प्राधिकारी को इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर आवश्यक आदेश पारित करने का निर्देश दिया गया है।

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