इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 26 अगस्त, 2025 को दिए एक फैसले में यह स्पष्ट किया है कि ‘प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरण’ के तहत आए किसी कर्मचारी को अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने का कोई अलंघनीय अधिकार नहीं है। नियोक्ता विभाग (Borrowing Department) उसे किसी भी समय उसके मूल विभाग में वापस भेज सकता है।
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सहायक अभियंता अमित कुमार गौतम द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) से अपने मूल विभाग, सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, में समय से पहले प्रत्यावर्तन (Repatriation) को चुनौती दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता अमित कुमार गौतम, जो सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के कर्मचारी हैं, को 7 फरवरी, 2024 के एक आदेश के तहत UPPCL में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया था। राज्यपाल की ओर से जारी इस आदेश में कहा गया था कि प्रतिनियुक्ति की अवधि तीन वर्ष से अधिक नहीं होगी।

लगभग एक वर्ष तक सेवा देने के बाद, UPPCL ने 20 फरवरी, 2025 को एक आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को उनके मूल विभाग में वापस भेज दिया। याचिकाकर्ता ने इसी प्रत्यावर्तन आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
दोनों पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील, श्री संदीप कुमार ने तर्क दिया कि चूंकि प्रतिनियुक्ति तीन साल की निश्चित अवधि के लिए थी और राज्यपाल की ओर से स्वीकृत थी, इसलिए केवल राज्य सरकार ही उन्हें वापस भेजने का आदेश दे सकती थी। उन्होंने यह भी दलील दी कि UPPCL को कार्यकाल पूरा होने से पहले उन्हें वापस भेजने का कोई अधिकार नहीं था। वकील ने यह भी कहा कि यह आदेश बिना किसी जांच के, कुछ अनकहे आरोपों के आधार पर दिया गया एक दंडात्मक आदेश था।
वहीं, UPPCL का प्रतिनिधित्व कर रहीं सुश्री विशाखा पांडे ने कहा कि यह ‘प्रतिनियुक्ति पर नियुक्ति’ का नहीं, बल्कि ‘प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरण’ का मामला था, जिसका अर्थ है कि याचिकाकर्ता को निर्धारित अवधि तक बने रहने का कोई अलंघनीय अधिकार नहीं था। उन्होंने जोर देकर कहा कि UPPCL एक स्वतंत्र संस्था है और उसे अपने कर्मचारियों के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है, जिसमें प्रत्यावर्तन भी शामिल है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता का काम संतोषजनक नहीं था, लेकिन कहा कि प्रत्यावर्तन का आदेश कलंकित नहीं था क्योंकि इसमें किसी प्रतिकूल कारण का उल्लेख नहीं किया गया था।
न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सबसे पहले इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या याचिकाकर्ता को पूरी निर्धारित अवधि के लिए प्रतिनियुक्ति पर बने रहने का अधिकार है। न्यायालय ने पाया कि यह मामला किसी चयन प्रक्रिया के माध्यम से प्रतिनियुक्ति पर नियुक्ति का नहीं, बल्कि “प्रतिनियुक्ति का एक साधारण आदेश” था।
सुप्रीम कोर्ट के यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एस.एन. मैती (2015) मामले का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने ‘प्रतिनियुक्ति पर नियुक्ति’ और ‘प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरण’ के बीच अंतर स्पष्ट किया। न्यायालय ने कहा कि ‘प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरण’ के मामलों में कर्मचारी को कार्यकाल पूरा करने का कोई अलंघनीय अधिकार नहीं होता है।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट के रतिलाल बी. सोनी बनाम गुजरात राज्य (1990) और कुणाल नंदा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2000) के निर्णयों पर भी भरोसा किया गया, जिन्होंने यह कानूनी सिद्धांत स्थापित किया है कि प्रतिनियुक्ति पर आए कर्मचारी को किसी भी समय उसके मूल कैडर में वापस भेजा जा सकता है।
याचिकाकर्ता के अन्य तर्कों को संबोधित करते हुए, न्यायालय ने माना कि चूंकि UPPCL एक अलग इकाई है, इसलिए उसके प्रबंध निदेशक को प्रत्यावर्तन का आदेश पारित करने का पूरा अधिकार था। न्यायालय ने यह भी पाया कि आदेश कलंकित नहीं था, क्योंकि इसमें केवल यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता का काम संतोषजनक नहीं था और उसके खिलाफ कुछ नोटिसों के अलावा कोई औपचारिक जांच शुरू नहीं की गई थी।
न्यायालय का अंतिम फैसला
इस विश्लेषण के आधार पर, हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्क कानूनी रूप से टिकने योग्य नहीं थे। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता को किसी भी समय, यहां तक कि निर्धारित अवधि समाप्त होने से पहले भी, उसके मूल विभाग में वापस भेजा जा सकता है।
इसके परिणामस्वरूप, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
हालांकि, न्याय के हित में, न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि समय से पहले प्रत्यावर्तन, भविष्य में परिस्थितियों के अनुसार, याचिकाकर्ता को नई प्रतिनियुक्ति के लिए विचार किए जाने से वंचित नहीं करेगा।