इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हलफनामे की नोटरी प्रक्रिया और हलफनामे की शपथ पर वादकारी से बार एसोसिएशन द्वारा शुल्क वसूली पर उठाए सवाल

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाचन वाद संख्या 28 सन् 2019 में पारित दिनांक 15.04.2022 के एक श्रम निर्णय की कार्यवाही पर स्थगनादेश जारी करते हुए, उच्च न्यायालय नियमों के अंतर्गत हलफनामे की शपथ प्रक्रिया और वादकारियों से वसूले जा रहे शुल्क को लेकर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। न्यायालय ने इस विषय की आगे जांच का निर्देश दिया है, विशेष रूप से नोटरी अधिनियम, 1952 और संविधान के अनुच्छेद 265 के आलोक में।

मामला पृष्ठभूमि:

यह रिट याचिका एम/एस राजधानी इंटर स्टेट ट्रांसपोर्ट कंपनी द्वारा, उसके प्राधिकृत प्रतिनिधि श्री सुनील कुमार मग्गू के माध्यम से दायर की गई थी, जिसमें श्रम निर्णय की कार्यवाही को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री तुषार मित्तल ने न्यायालय को अवगत कराया कि पहले एक स्थगन इस कारण से मांगा गया था क्योंकि हलफनामा देने वाला व्यक्ति फोटो पहचान हेतु लखनऊ नहीं आ सका था, जो कि शपथ के लिए हाईकोर्ट रजिस्ट्री द्वारा अनिवार्य किया गया है।

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न्यायालय की पूछताछ और विधिक ढांचा:

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने यह प्रश्न उठाया कि आखिर हलफनामा देने वाला व्यक्ति अपने निवास स्थान पर नोटरी अधिनियम, 1952 के अंतर्गत किसी नोटरी के समक्ष हलफनामा क्यों नहीं दे सकता? इसके उत्तर में, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने एक संक्षिप्त टिप्पणी दायर की, जिसमें कहा गया कि यद्यपि नोटरी अधिनियम के अंतर्गत कोई विधिक रोक नहीं है, किंतु व्यवहार में हाईकोर्ट की रजिस्ट्री केवल उन्हीं हलफनामों को स्वीकार करती है जो अध्याय IV, इलाहाबाद उच्च न्यायालय नियमावली के तहत नियुक्त ओथ कमिश्नर के समक्ष शपथ लिए जाते हैं, और वह भी निर्दिष्ट फोटो केंद्र में पहचान के उपरांत।

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न्यायालय ने कहा:

प्रथमदृष्टया, नोटरी अधिनियम के अंतर्गत दिए गए हलफनामे को अस्वीकार करना इलाहाबाद उच्च न्यायालय नियमों के अंतर्गत भी वैध प्रतीत नहीं होता।

न्यायालय ने अपने पूर्व निर्णय सज्जन कुमार बनाम सी.एल. वर्मा व अन्य, AIR 2006 All 36 का हवाला भी दिया, जिसमें इसी प्रकार की प्रक्रिया से जुड़ी असंगतियों की चर्चा की गई थी।

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शपथ शुल्क वसूली पर चिंता:

न्यायालय ने हलफनामे की शपथ के लिए वसूले जा रहे वित्तीय शुल्कों की भी समीक्षा की और कहा:

पहचान की शक्ति बार एसोसिएशन को सौंपी गई है, जिन्हें ₹125/- की राशि वसूलने की अनुमति दी गई है, और इसके अतिरिक्त ₹400/- की राशि सीधे अधिवक्ता के खाते में फोटो सेंटर से चली जाती है।

न्यायमूर्ति भाटिया ने आगे टिप्पणी की:

प्रथमदृष्टया, इस राशि की वसूली न तो किसी विधि द्वारा अनुमोदित है और न ही यह संविधान के अनुच्छेद 265 के अनुरूप है।

न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश:

इन विषयों पर संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश पारित किए:

  • अधिवक्ता श्री तुषार मित्तल को इस मुद्दे पर न्यायालय की सहायता हेतु एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया।
  • याचिका की प्रति एवं अधिवक्ता द्वारा दायर लिखित टिप्पणी श्री गौरव मेहरोत्रा, जो हाईकोर्ट की ओर से उपस्थित हैं, को प्रदान करने का निर्देश, ताकि वे आवश्यक कार्यालय ज्ञापनों के साथ न्यायालय की सहायता कर सकें।
  • रजिस्ट्रार जनरल को यह निर्देश दिया गया कि वे वे कार्यालय ज्ञापन प्रस्तुत करें जिनके तहत यह शुल्क बार एसोसिएशन को दिया जा रहा है।
  • मामले की अगली सुनवाई के लिए दिनांक 29.04.2025 नियत की गई।
  • दिनांक 15.04.2022 को पारित श्रम निर्णय की कार्यवाही पर अगली सुनवाई तक स्थगन जारी रहेगा।
  • याचिकाकर्ता द्वारा दायर लिखित टिप्पणी को अभिलेख पर रखने का निर्देश।
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मामले का शीर्षक: एम/एस राजधानी इंटर स्टेट ट्रांसपोर्ट कंपनी, नई दिल्ली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य

मामला संख्या: रिट – सिविल संख्या 3389 सन् 2025

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