इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्टांप शुल्क वापसी से इनकार करने के आदेश को रद्द कर दिया, यह मानते हुए कि पूर्वव्यापी (retrospective) संशोधन के माध्यम से किसी अर्जित अधिकार (accrued right) को समाप्त नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने रिट याचिका संख्या 39180/2024 (सीमा पड़ालिया एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य) में 6 मार्च 2025 को यह निर्णय सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, सीमा पड़ालिया और अन्य, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता राहुल सहाय और सौमित्र आनंद ने किया, ने 2015 में ₹4,37,000 के स्टांप पेपर खरीदे थे। यह स्टांप पेपर नोएडा (New Okhla Industrial Development Authority – NOIDA) और एम/एस AGC रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड के साथ “होम्स 121”, सेक्टर 121, नोएडा में एक आवासीय इकाई की बिक्री और सबलीज समझौते के लिए खरीदे गए थे।

हालांकि, नोएडा प्राधिकरण द्वारा परियोजना में फ्लैटों की बिक्री और हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाने के कारण यह समझौता पंजीकृत नहीं किया जा सका।
इसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने नवंबर 2023 में अपना आवंटन सरेंडर कर दिया और 27 अप्रैल 2024 को अप्रयुक्त स्टांप शुल्क की वापसी के लिए आवेदन किया।
लेकिन, यूपी स्टांप (पांचवां संशोधन) नियम, 2021 के नियम 218 का हवाला देते हुए अधिकारियों ने उनका आवेदन आठ साल की सीमा अवधि के कारण अस्वीकार कर दिया।
कोर्ट का अवलोकन और निर्णय
प्रतिवादियों की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता (C.S.C.) और अधिवक्ता कौशलेंद्र नाथ सिंह ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ताओं ने 2021 के संशोधन के बाद आवेदन किया, इसलिए उनके दावे पर संशोधित नियम लागू होगा।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट के “हर्षित हरीश जैन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2025 Law Suit SC 105)” मामले का संदर्भ लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में माना था कि:
- किसी संशोधन द्वारा पूर्वव्यापी रूप से सीमा निर्धारित कर किसी अर्जित अधिकार को समाप्त नहीं किया जा सकता।
- राज्य को केवल तकनीकी आधार पर नागरिकों के वित्तीय दावों को खारिज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
- न्यायसंगत सिद्धांतों (equitable principles) के आधार पर, राज्य को अनुचित रूप से समृद्ध (unjust enrichment) होने से रोका जाना चाहिए।
हाईकोर्ट के निर्णय के प्रमुख बिंदु:
✔ याचिकाकर्ताओं ने 2015 में स्टांप पेपर खरीदे थे, जो 2021 संशोधन से पहले की बात है।
✔ उनका स्टांप शुल्क वापसी का अधिकार उस समय लागू नियमों के अनुसार मान्य था, जिसे नया संशोधन समाप्त नहीं कर सकता।
✔ प्राधिकरण द्वारा की गई अस्वीकृति पूरी तरह तकनीकी आधार पर थी, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत थी।
अदालत का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिकारियों के अस्वीकृति आदेश को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं के स्टांप शुल्क वापसी आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार पुनर्विचार करें।