त्रुटियां क्यों नहीं बताई गईं?: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री से जवाब तलब किया, बार-बार की लापरवाही पर रजिस्ट्रार जनरल को कड़े निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाओं में त्रुटियों (Defects) के बावजूद उन्हें सूचीबद्ध किए जाने की पुनरावृत्ति पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने रजिस्ट्रार जनरल को यह जांच करने का निर्देश दिया है कि रिपोर्टिंग अनुभाग द्वारा इन त्रुटियों को क्यों नहीं चिन्हित किया जा रहा है। साथ ही, कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने को कहा है कि कोर्ट के समक्ष याचिका प्रस्तुत करने से पहले एक वरिष्ठ अधिकारी सत्यापित करें कि त्रुटियों को ठीक कर लिया गया है या नहीं।

कोर्ट मीनाक्षी भेतवाल द्वारा भारत संघ और अन्य के खिलाफ दायर एक रिट याचिका (Writ-A No. 16103 of 2025) पर सुनवाई कर रही थी। कार्यवाही के दौरान, कोर्ट ने पाया कि याचिका त्रुटिपूर्ण थी। विशेष रूप से, कोर्ट ने नोट किया कि “पेपर बुक के कई पन्नों पर दोहरी पृष्ठ संख्या (double page numbering) थी।”

यह कोई एक घटना नहीं थी; कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह “आज का चौथा मामला है जिसमें कोर्ट द्वारा ऐसी त्रुटियां पाई गई हैं।”

याचिका में त्रुटि सामने आने पर, याचिकाकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री ए.पी. पॉल ने कोर्ट से अनुरोध किया कि रिट याचिका को वापस लेने (dismissed as withdrawn) की अनुमति दी जाए। उन्होंने “बेहतर विवरण” (better particulars) के साथ एक नई याचिका दायर करने की छूट मांगी।

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कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने याचिका दाखिल करते समय ऐसी स्पष्ट त्रुटियों की पहचान करने में रजिस्ट्री की विफलता पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की।

कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को मामले को देखने और यह पता लगाने का निर्देश दिया कि “संबंधित अनुभाग द्वारा रिट याचिकाओं को दाखिल करते समय ऐसी त्रुटियां क्यों नहीं बताई गईं।”

ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए, कोर्ट ने सत्यापन प्रक्रिया के संबंध में एक विशिष्ट निर्देश जारी किया:

“इसके अलावा, यह निर्देशित किया जाता है कि इस कोर्ट के समक्ष कोई भी याचिका प्रस्तुत करने से पहले रजिस्ट्रार जनरल स्वयं या रजिस्ट्री के किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी को प्रतिनियुक्त करेंगे जो यह सत्यापित करेंगे कि त्रुटियों को ठीक किया गया है या नहीं।”

रेनू देवी मामले में बाद की टिप्पणी

इसके बाद, 10 नवंबर 2025 के एक आदेश में, रेनू देवी और 4 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 15 अन्य (Writ-A No. 16610 of 2025) के मामले में, इसी पीठ ने एक और लापरवाही देखी जहां याचिका के साथ संलग्न एक संचार की प्रति “अस्पष्ट” (illegible) थी।

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कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि एक सप्ताह पहले पारित विशिष्ट आदेश के बावजूद रजिस्ट्री फिर से त्रुटि को चिन्हित करने में विफल रही। कोर्ट ने कहा:

“यह बहुत अजीब है कि रजिस्ट्री द्वारा कोई त्रुटि नहीं बताई गई, बावजूद इसके कि ऐसी बार-बार की घटनाओं का संज्ञान लेते हुए, इस कोर्ट ने मीनाक्षी भेतवाल बनाम भारत संघ और अन्य, 2025:AHC:192745 में दिनांक 03.11.2025 को एक आदेश पारित किया था…”

निर्णय

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मीनाक्षी भेतवाल के मामले में, कोर्ट ने याचिका को वापस लेने की अनुमति दी और नई याचिका दायर करने की छूट दी। हालांकि, कोर्ट ने 500/- रुपये का हर्जाना (Cost) लगाया, जिसे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद के बैंक खाते में जमा करने का निर्देश दिया गया है।

कोर्ट ने आदेश दिया कि “रजिस्ट्री हर्जाने के भुगतान की रसीद प्राप्त होने के बाद ही नई याचिका स्वीकार करेगी।”

अनुपालन के लिए आदेश की एक प्रति तत्काल रजिस्ट्रार जनरल को भेजने का निर्देश दिया गया।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: मीनाक्षी भेतवाल बनाम भारत संघ और 2 अन्य
  • केस संख्या: WRITA No. 16103 of 2025
  • साइटेशन: 2025:AHC:192745
  • पीठ: जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी
  • याचिकाकर्ता के वकील: आनंद प्रकाश पॉल, कौस्तुभ तिवारी
  • प्रतिवादी के वकील: ए.एस.जी.आई., मनोज कुमार सिंह, शिवेंदु ओझा

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