इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि वित्तीय वर्ष के अंत में बजटीय आवंटन की समाप्ति किसी पात्र उम्मीदवार को छात्रवृत्ति न देने का आधार नहीं हो सकती। न्यायालय ने प्रयागराज के समाज कल्याण विभाग को लागू योजना के तहत तीन महीने के भीतर छात्रवृत्ति का भुगतान सुनिश्चित करने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में खाद्य प्रौद्योगिकी में एमएससी कर रहे छात्र पुलस्त्य तिवारी की याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश जारी किया, जिन्होंने वर्ष 2023-24 के लिए उत्तर प्रदेश छात्रवृत्ति योजना के लिए आवेदन किया था। छात्रवृत्ति न मिलने के बारे में पूछताछ करने पर तिवारी को पता चला कि छात्रवृत्ति अयोध्या के एक अन्य छात्र को गलती से दे दी गई थी, जिसने अपने आवेदन में तिवारी के हाई स्कूल रोल नंबर का इस्तेमाल किया था।
तिवारी के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि उनके मुवक्किल की ओर से कोई गलती नहीं थी, इसलिए उन्हें योजना के तहत छात्रवृत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। प्रतिवादियों के स्थायी अधिवक्ता ने छात्रवृत्ति के लिए तिवारी की पात्रता की पुष्टि करते हुए एक हलफनामा भी प्रस्तुत किया।
अदालत ने पाया कि तिवारी के रोल नंबर का इस्तेमाल करके गलती से किसी दूसरे छात्र को छात्रवृत्ति दे दी गई थी। वित्तीय वर्ष 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने और बजट के खत्म होने के बावजूद, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ये कारक किसी योग्य छात्र से छात्रवृत्ति रोकने को उचित नहीं ठहराते। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए, अदालत ने समाज कल्याण विभाग को अदालत का आदेश मिलने के तीन महीने के भीतर तिवारी को छात्रवृत्ति का भुगतान करने का निर्देश दिया।