इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विलंबित समीक्षा याचिकाओं को दोषपूर्ण चिह्नित करने का दिया निर्देश, विलंब क्षमादान तक नहीं होगी नियमित सुनवाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल मिस्‍क. रिव्‍यू एप्लिकेशन नंबर 226 ऑफ 2025 (लाल चंद बनाम मनोज कुमार) में स्पष्ट किया है कि यदि समीक्षा याचिका समय-सीमा समाप्त होने के बाद दायर की जाती है, तो जब तक देरी औपचारिक रूप से क्षमा नहीं की जाती, उसे दोषपूर्ण याचिका के रूप में ही चिह्नित किया जाएगा।

न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने यह आदेश याचिकाकर्ता के अधिवक्ता बन्‍स राज और प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता अभिषेक कुमार सरोज की दलीलें सुनने के बाद पारित किया। न्यायालय ने रजिस्ट्रार (जे) (लिस्टिंग), श्री मयूर जैन की दिनांक 7 जुलाई 2025 की रिपोर्ट का परीक्षण किया, जो कोर्ट के पूर्व निर्देशों के अनुपालन में प्रस्तुत की गई थी। इस रिपोर्ट में उल्लेख था कि प्रथा के अनुसार, समीक्षा याचिकाओं को, भले ही वे समयबद्ध न हों, नियमित याचिकाओं के रूप में पंजीकृत कर लिया जाता है, केवल विलंब के उल्लेख के साथ।

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न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने टिप्पणी की कि जहाँ तक रिट याचिकाओं का संबंध है, सामान्यतः उन्हें नियमित याचिकाओं के रूप में पंजीकृत किया जाता है और समय-सीमा की बाधा केवल प्रमाणित प्रति तक ही सीमित रहती है, लेकिन समीक्षा याचिकाओं जैसी विविध याचिकाओं पर यह अपवाद लागू नहीं होता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रिट याचिका पर निर्णय देने के पश्चात कोर्ट functus officio हो जाता है और उसके पश्चात केवल समीक्षा याचिका ही विचारणीय होती है, जिस पर पूरी तरह सीमावधि कानून लागू होता है।

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कोर्ट ने तिलोकचंद और मोतीचंद बनाम एच.बी. मुंशी और बसवराज बनाम विशेष भूमि अर्जन अधिकारी जैसे निर्णयों पर भरोसा करते हुए इस सिद्धांत को रेखांकित किया कि “कानून कठोर है, परंतु वही कानून है” (dura lex sed lex)। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के इस पुनरुल्लेख को उद्धृत किया कि किसी पक्ष को असुविधा या कठिनाई होना निर्णायक कारक नहीं है और न्यायालयों के पास मात्र न्यायसंगत आधारों पर सीमावधि बढ़ाने की शक्ति नहीं है।

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न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने कहा:
“सीमावधि अधिनियम, 1963 समीक्षा याचिकाओं पर पूरी तरह लागू होता है… यदि कोई समीक्षा याचिका सीमावधि से बाधित है, तो उसे विलंब की दृष्टि से दोषयुक्त रिपोर्ट किया जाना चाहिए।”

कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि सिर्फ हाईकोर्ट की परंपरा या प्रथा के आधार पर समीक्षा याचिका को नियमित याचिका के रूप में पंजीकृत करना समाप्त किया जाना चाहिए। पहले विलंब क्षमादान प्रार्थना-पत्र पर नोटिस जारी होना चाहिए, जिससे प्रतिपक्ष को सुनवाई का अधिकार मिले, और केवल विलंब क्षमादान के पश्चात ही समीक्षा याचिका विचारणीय मानी जाएगी।

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उक्त अनुसार, न्यायालय ने स्टैम्प रिपोर्टर को निर्देश दिया कि वर्तमान समीक्षा याचिका को दोषयुक्त के रूप में पुनः रिपोर्ट किया जाए और इस मामले को पुनः विचारार्थ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।

मामले का शीर्षक: लाल चंद बनाम मनोज कुमार
मामला संख्या: सिविल मिस्‍क. रिव्‍यू एप्लिकेशन नंबर 226 ऑफ 2025
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता: बन्‍स राज
प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता: अभिषेक कुमार सरोज

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