इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिवक्ता के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई को खारिज किया

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें अधिवक्ता संत राम राठौर को पीलीभीत जिले की किसी भी अदालत में एक वर्ष तक वकालत करने से प्रतिबंधित किया गया था। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि बार काउंसिल के पास अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का कोई आधार नहीं था, क्योंकि हाईकोर्ट ने संबंधित अवमानना ​​कार्यवाही में अधिवक्ता की माफी पहले ही स्वीकार कर ली थी।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला उत्तर प्रदेश बार काउंसिल द्वारा पारित 3 जुलाई, 2024 के अनुशासनात्मक आदेश के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें अधिवक्ता संत राम राठौर को पीलीभीत जिले की किसी भी अदालत में एक वर्ष तक वकालत करने से परहेज करने का निर्देश दिया गया था। यह अनुशासनात्मक कार्रवाई हाईकोर्ट द्वारा 26 अक्टूबर, 2023 को अदालत की सुनवाई के दौरान अपने आचरण के लिए माफी मांगने के बाद राठौर के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही को समाप्त करने के पहले के फैसले के बावजूद शुरू की गई थी। हाईकोर्ट ने पहले ही राठौर को चेतावनी दी थी और उनकी माफी स्वीकार कर ली थी, जिससे मामला बंद हो गया।

महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे:

READ ALSO  एनजीटी ने एम्स और उसके आसपास वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उपाय करने का आदेश दिया है

इस मामले में प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के पास राठौर के खिलाफ उसी आचरण के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने और जारी रखने का अधिकार था, जिसके लिए हाईकोर्ट ने पहले ही माफ़ी मांगी थी और माफ़ी स्वीकार कर ली थी। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा यह था कि क्या बार काउंसिल राठौर के अभ्यास पर प्रतिबंध लगा सकती है, जबकि हाईकोर्ट ने उन्हें अभ्यास जारी रखने की अनुमति दी थी।

अदालत की टिप्पणियाँ:

अदालत ने अपनी टिप्पणी में स्पष्ट रूप से कहा, “एक बार जब इस न्यायालय की समन्वय पीठ ने अवमाननाकर्ता द्वारा दी गई माफ़ी स्वीकार कर ली है और उसके खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही को समाप्त कर दिया है, तो मामला वहीं समाप्त हो जाना चाहिए था।” पीठ ने आगे टिप्पणी की, “उसी कदाचार के लिए जिसे हाईकोर्ट ने माफ कर दिया है, बार काउंसिल द्वारा आगे की कार्यवाही जारी नहीं रखी जानी चाहिए।”

इस निर्णय में बार काउंसिल को एक सख्त चेतावनी भी दी गई है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि वे कानून के अनुसार तभी कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं, जब याचिकाकर्ता द्वारा कदाचार का कोई नया मामला सामने आए, लेकिन ऐसी घटना के आधार पर नहीं, जिसका न्यायालय द्वारा पहले ही निर्णय लिया जा चुका है और समाधान हो चुका है।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने बहन सहित दो की हत्या के दोषी व्यक्ति की मौत की सजा कम की

न्यायालय का निर्णय:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के 3 जुलाई, 2024 के विवादित आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने माना कि उसी घटना के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखना, जिसका हाईकोर्ट द्वारा पहले ही निष्कर्ष निकाला जा चुका है, अनुचित है और बार काउंसिल के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि बार काउंसिल केवल किसी नए कदाचार के मामले में ही कार्रवाई कर सकती है, न कि ऐसे मामले के लिए जो पहले ही हल हो चुका है।

READ ALSO  हाईकोर्ट ने सौतेली मां के बलात्कार और हत्या के आरोपी को किया बरी, फोरेंसिक रिपोर्ट पर संज्ञान ना लेने पर आईओ के खिलाफ जांच के आदेश भी दिए

केस विवरण:

– केस का शीर्षक: संत राम राठौर बनाम यूपी बार काउंसिल इलाहाबाद और अन्य

– केस नंबर: रिट – सी नंबर 27919 ऑफ 2024

– बेंच: जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला

– याचिकाकर्ता के वकील: अशोक कुमार राय, पवन कुमार पांडे (वरिष्ठ अधिवक्ता)

– प्रतिवादी के वकील: अशोक कुमार तिवारी

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles