इलाहाबाद हाईकोर्ट ने “शादी का झूठा वादा” मामला किया खारिज, कहा – विवाह के बाद मुकदमे की कोई प्रासंगिकता नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देवेंद्र कुमार तिवारी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे को खारिज कर दिया, जिन पर शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप था। हाईकोर्ट ने यह निर्णय तब दिया जब यह स्पष्ट हुआ कि मुकदमे के दौरान ही दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाह कर लिया, जिससे आगे की आपराधिक कार्यवाही अनावश्यक हो गई।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 23 अक्टूबर 2024 को पारा पुलिस स्टेशन, लखनऊ में दर्ज एक FIR से शुरू हुआ था, जिसमें शिकायतकर्ता महिला ने देवेंद्र कुमार तिवारी पर शादी का झूठा वादा कर संबंध बनाने और फिर अपने वादे से मुकरने का आरोप लगाया था।

एफआईआर में निम्नलिखित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था:

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  1. भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 69, 352 और 351(2) – जो यौन अपराधों और हमले से संबंधित हैं।
  2. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(d), 3(e) और 3(2)(v) – जो SC/ST समुदाय के खिलाफ अपराधों को दंडित करता है, विशेष रूप से जब कोई व्यक्ति गलत इरादे से या जबरन ऐसा करता है।

मुकदमे के दौरान हुआ विवाह

मुकदमे की कार्यवाही के दौरान, परिवारों के हस्तक्षेप से दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया, और उन्होंने 17 जनवरी 2025 को विधिवत विवाह कर लिया।

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इसके बाद, याचिकाकर्ता (देवेंद्र कुमार तिवारी) ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 528 के तहत एक याचिका दायर कर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि अब जब विवाह हो चुका है, तो आपराधिक मामला जारी रखना गैर-जरूरी है।

कोर्ट की टिप्पणियां

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की एकल पीठ ने की। कोर्ट ने यह जांच की कि क्या आपसी समझौते और विवाह के बावजूद आपराधिक कार्यवाही जारी रह सकती है?

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जब किसी निजी विवाद का समाधान हो जाता है, विशेष रूप से वैवाहिक मामलों में, तो अदालतें मामले को खारिज कर सकती हैं।

कोर्ट ने कहा कि:

“शिकायतकर्ता महिला की मुख्य शिकायत यह थी कि आरोपी ने शादी का वादा पूरा नहीं किया। लेकिन अब जब दोनों विवाह कर चुके हैं, तो आपराधिक मुकदमा चलाने का कोई औचित्य नहीं बचता।”

“ऐसे मामलों में कानून को व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, जब विवाद का सौहार्दपूर्ण समाधान हो चुका हो।”

“मुकदमा जारी रखने से सिर्फ उनके वैवाहिक जीवन में बाधा आएगी और अनावश्यक कठिनाई उत्पन्न होगी।”

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कोर्ट द्वारा दिए गए कानूनी संदर्भ

हाईकोर्ट ने निम्नलिखित सुप्रीम कोर्ट के मामलों का हवाला दिया:

  1. राज्य बनाम कर्नाटक बनाम एल. मुनिस्वामी (1977) 2 SCC 699 – जिसमें कहा गया कि आपराधिक कानून को निजी मामलों में हस्तक्षेप के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए जब समाधान निकल आया हो।
  2. बी.एस. जोशी बनाम हरियाणा राज्य (2003) 4 SCC 675 – जिसमें कहा गया कि यदि किसी आपराधिक मामले की उत्पत्ति एक निजी विवाद से हुई है और बाद में उसका समाधान हो गया है, तो अदालतें मुकदमा खत्म कर सकती हैं।
  3. रामगोपाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022) 14 SCC 531 और सोनू उर्फ सुभाष कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021 SCC OnLine SC 181) – जिसमें शादी के झूठे वादे के आधार पर दर्ज मुकदमों में आपसी समझौते की स्थिति में केस खत्म करने का समर्थन किया गया।

कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार करते हुए BNSS की धारा 528 (CrPC की धारा 482 के समकक्ष) के तहत मुकदमा समाप्त करने का आदेश दिया।

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अदालत ने कहा कि:

“हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) का प्रयोग उन परिस्थितियों में किया जाना चाहिए, जहां आपराधिक मुकदमे की निरंतरता कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग (abuse of legal process) के समान हो या जहां पक्षकारों के बीच समझौते से विवाद समाप्त हो गया हो।”

“इस मामले में, जब शिकायतकर्ता स्वयं आगे नहीं बढ़ना चाहती और दोनों पक्ष अब विवाह कर चुके हैं, तो इस मुकदमे को जारी रखना न्याय के हित में नहीं होगा।”

नतीजा

हाईकोर्ट ने मुकदमे को खारिज कर दिया।
विशेष न्यायाधीश (अत्याचार निवारण अधिनियम), लखनऊ की अदालत में चल रही आपराधिक कार्यवाही समाप्त कर दी गई।
यह फैसला उन मामलों में एक मिसाल बनेगा, जहां आपसी सहमति से विवाद समाप्त हो जाता है।

कानूनी प्रतिनिधित्व

  • याचिकाकर्ता (देवेंद्र कुमार तिवारी): अधिवक्ता अमन ठाकुर
  • उत्तर प्रदेश राज्य: सरकारी अधिवक्ता कौशल कुमार
  • शिकायतकर्ता (महिला): अधिवक्ता अनार्श वर्मा

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