धारा 82 सीआरपीसी के तहत उद्घोषणा जारी होने के 30 दिन बीत जाने से पहले धारा 174A आईपीसी के तहत उद्घोषित अपराधी के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि धारा 82 दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत उद्घोषणा जारी होने के 30 दिन बीत जाने से पहले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 174-ए के तहत उद्घोषित अपराधी के खिलाफ कोई प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया ने 29 अगस्त, 2024 को रवि देव सिंह उर्फ ​​रविदेव यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (आवेदन यू/एस 482 संख्या 7630/2024) के मामले में यह फैसला सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि:

आवेदक, रवि देव सिंह उर्फ ​​रविदेव यादव और एक अन्य ने उनके खिलाफ शुरू की गई धारा 174-ए आईपीसी के तहत कार्यवाही को चुनौती देते हुए इलाहाबाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम), लखनऊ द्वारा 7 मई, 2024 को जारी समन आदेश के आधार पर पुलिस स्टेशन पीजीआई, जिला लखनऊ में एफआईआर (संख्या 766/2023) दर्ज की गई थी। आवेदकों ने तर्क दिया कि एफआईआर और उसके बाद की कार्यवाही कानूनी रूप से अस्थिर थी।

आवेदकों का प्रतिनिधित्व राकेश कुमार चौधरी, आदित्य कुमार पांडे, आयुष चौधरी और गौरव विश्वकर्मा सहित वकीलों की एक टीम ने किया। विपरीत पक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता (एजीए) ने किया।

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मुख्य कानूनी मुद्दे:

अदालत के समक्ष प्राथमिक मुद्दा यह था कि क्या धारा 82 सीआरपीसी के तहत उद्घोषणा जारी होने से 30 दिन बीतने से पहले उद्घोषित अपराधी के लिए धारा 174-ए आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज की जा सकती है। धारा 174-ए आईपीसी, सीआरपीसी की धारा 82 के तहत प्रकाशित उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित निर्दिष्ट स्थान और समय पर उपस्थित न होने की सजा से संबंधित है।

आवेदकों ने तर्क दिया कि धारा 174-ए आईपीसी के तहत कार्यवाही अस्थिर थी क्योंकि वे सीआरपीसी की धारा 195 के अनिवार्य प्रावधानों के विपरीत, एक एफआईआर के आधार पर शुरू की गई थीं। यह धारा अदालत को संबंधित लोक सेवक की लिखित शिकायत को छोड़कर, धारा 172 से 188 आईपीसी के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान लेने से रोकती है।

न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय:

न्यायमूर्ति लवानिया ने देखा कि एफआईआर के आधार पर धारा 174-ए आईपीसी के तहत कार्यवाही शुरू करना कानूनी प्रावधानों के विपरीत था। अदालत ने आपराधिक विविध में इलाहाबाद कोर्ट की खंडपीठ के फैसले का हवाला दिया। रिट याचिका संख्या 17560/2023 (सुमित और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य), जिसमें कहा गया था कि ऐसी कार्यवाही केवल न्यायालय द्वारा लिखित शिकायत के आधार पर शुरू की जा सकती है, पुलिस रिपोर्ट पर नहीं।

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न्यायमूर्ति लवानिया ने फैसले का हवाला देते हुए कहा:

“धारा 195 सीआरपीसी स्पष्ट रूप से न्यायालय को धारा 172 से 188 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराधों का संज्ञान लेने से रोकती है, सिवाय संबंधित लोक सेवक की लिखित शिकायत के। इसमें धारा 174-ए आईपीसी के तहत अपराध शामिल हैं।”

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 195 सीआरपीसी के पीछे विधायी मंशा व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना है, यह सुनिश्चित करना है कि धारा 174-ए आईपीसी जैसे अपराधों के लिए अनावश्यक एफआईआर के माध्यम से पुलिस द्वारा उन्हें परेशान न किया जाए। 

न्यायालय ने कहाः

“धारा 82 सीआरपीसी के तहत उद्घोषणा जारी होने के 30 दिन बीत जाने से पहले धारा 174-ए आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देना न्याय का मखौल उड़ाना और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।”

न्यायालय ने आगे माना कि आवेदकों के खिलाफ एफआईआर कायम रखने योग्य नहीं थी और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ के समक्ष लंबित केस संख्या 44489/2024 राज्य बनाम रविदेव यादव और अन्य की कार्यवाही को रद्द कर दिया।

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केस विवरणः

– केस शीर्षकः रवि देव सिंह @ रविदेव यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य। एडिशनल के माध्यम से। मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव गृह, लखनऊ

– केस संख्या: आवेदन धारा 482 संख्या 7630/2024

– पीठ: माननीय न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया

– आवेदक: रवि देव सिंह @ रविदेव यादव एवं अन्य

– विपक्षी: उत्तर प्रदेश राज्य, अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव गृह, लखनऊ के माध्यम से प्रतिनिधित्व

– आवेदकों के वकील: राकेश कुमार चौधरी, आदित्य कुमार पांडेय, आयुष चौधरी, गौरव विश्वकर्मा

– विपक्षी के वकील: अपर शासकीय अधिवक्ता (एजीए)

– सुसंगत धाराएं: धारा 174-ए आईपीसी, धारा 82 सीआरपीसी, धारा 195(1)(ए)(आई) सीआरपीसी

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